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बुधवार, 26 जून 2019

ओरछा...

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥

You have a right to perform your prescribed duty, but you are not entitled to the fruits of action. Never consider yourself to be the cause of the results of your activities, and never be attached to not doing your duty. - Bhagavad Gita, Chapter II, Verse 47




जिज्ञासु  यात्रियों के लिए एक छुपा हुआ खजाना....


ओरछा...


सागर से ग्वालियर जाने वाले हाईवे पर स्थित हैं झांसी और यहाँ  से 15 किलोमीटर पर इतिहास का दफ्न वो खजाना है,  जिसकी मैं  बात कर रहा हूँ।


1501 में जब रूद्र प्रताप सिंह यहाँ आए तो बेतवा नदी की शांत धारा के समीप बसी यह जगह उन्हें बहुत पसंद आई और उन्होंने यहाँ  अपना नगर बसाने पर विचार किया।


इसके बाद उनके चौबीस वंशजो ने यहा लगभग  450 वर्ष तक निर्बाध राज किया। जिसमें आखिरी थे वीर सिह 1930।


भौगोलिक दृष्टि से यह अंग्रेजों के काम का न था अतः उनकी कुदृष्टी से भी बचा रहा।




ओरछा ने कभी भी चीख चीख कर अपनी उपस्थिति या अपने होने का एहसास नहीं दिलाया। इसीलिए यह स्थान खूबसूरत एवं ऐतिहासिक धरोहर से समृद्ध होते हुए भी छुपा हुआ सा है। ओरछा को इस बात का कभी अहंकार न हुआ कि उसने बुन्देलखंडी राजाओ के शोर्य और वीरता की कई कहानियों को सहेज रखा है। यह स्थान तो जैसे बेतवा नदी के किनारे तपस्या में लीन किसी साधु की तरह मौन हो अपना सफर तय करता रहा और आगे भी जाने कितने वर्षों तक करता रहेगा।


बेतवा नदी के निर्मल जल ने जिसका अभिषेक और अभिनंदन किया। बुन्देले राजाओं द्वारा खोजी और उन्हीं के द्वारा स्थापित इस शांत जगह पर जब हम पहुँचे, तो महसूस हुआ, प्रकृति की गोद मे छुपे इस खजाने मे गौरवान्वित करने की भी क्षमता है, और प्राकृतिक रूप से इसकी सुंदरता मन भी मोह लेती है।


उत्तरप्रदेश के झांसी से सिर्फ 15 कि.मी. तय कर आप मध्यप्रदेश के ओरछा में आ जाते हैं।


यहाँ आ कर आप साक्षी होते हैं इतिहास मे दर्ज वीरता की कई कहानियों से।




दिन की शुरुआत बेतवा नदी में राफ्टिंग से होती है। जो रोमांच से भर देती है। नदी किनारे वीर बुन्देले राजाओं की मृत्यु के पश्चात उनकी याद में निर्मित छत्रिया काल के प्रभाव से अभी तक अछूती और बेहतरीन कारीगरी इस बात का स्पष्ट प्रमाण देती हैं कि, बुन्देले राजाओं को शिल्पकला और भवन निर्माण में कितनी रूचि रही होगी। 30 से 45 मिनट की राफ्टिंग के दौरान आप नदी के किनारे किनारे प्राकृतिक नज़ारों के साथ साथ ओरछा की संस्कृति से भी रूबरू होते जाते हैं। पूरे ओरछा में जगह जगह पूराने भवनों के भग्नावेश पसरे हैं।


ओरछा के राजाओं ने अपनी सूझबूझ और बहादुरी  से काफी लंबे समय तक राज किया। 17वीं शताब्दी मे वीर सिंह देव द्वारा हिन्दू और मुगल शैली से निर्मित जहाँगीर महल बेजोड़ शिल्पकला और उनकी मुगलो से मैत्री का स्पष्ट प्रमाण है।




राजा राम की कहानी के बिना ओरछा का विवरण अधूरा है। जो इस प्रकार है,


ओरछा के राजा मधुकर शाह (1554 से 1591) कृष्ण के परम भक्त थे, किंतु उनकी रानी रामजी की पूजा किया करती थीं। एक बार राजा ने रानी को कृष्ण जी के दर्शन हेतु वृंदावन चलने को कहा। रानी ने इंकार कर दिया। इससे कुपित हो कर राजा ने रानी से अयोध्या जा कर तब तक न लौटने को कहा, जब तक राजा राम को वह अपने साथ नहीं ले आती। रानी अयोध्या चली गई और सरयू नदी के किनारे तपस्या करने लगी। राम जी के प्रकट न होने से रानी ने नदी मे कूद कर जान देने की कोशिश की। तभी बाल रूप मे रामजी प्रकट हुए और मूर्ती रूप मे तीन शर्तों के साथ रानी के साथ ओरछा चलने को तैयार हो गए।


पहली शर्त, वो उनको पैदल ही ओरछा ले जाएंगी. दूसरी शर्त, जहाँ वे उन्हें रख देंगी वे वही स्थापित हो जाएंगे और तीसरी, वे ओरछा के राजा होंगे। 


रानी ने तीनो शर्त मान ली। ओरछा मे इस बीच मधुकर शाह ने राम मंदिर का निर्माण कर लिया था। थोड़ा ही काम बचा था। रानी को ओरछा पहुंचते हुए रात हो गई। तभी रानी ने पास बनी धर्मशाला के रसोई कक्ष में रामजी की प्रतिमा रख दी। बस रामजी वही स्थापित हो गए। बाद मे उसी जगह रामजी का मन्दिर बना दिया गया। रामजी के लिये बने चतुर्भुज मन्दिर मे बाद में विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित की गई। यह मन्दिर 344 फीट ऊँचा और एक बहुमंजिला इमारत की तरह है, जिसके भीतर उपर तक जाने के लिए सकरी सीढिया बनी हैं। इसके बाद मधुकर शाह ने राम जी को ओरछा का राजा बना दिया और स्वयं अपना राज्य टीकमगढ मे स्थानांतरित कर लिया। आज भी ओरछा निवासी एवं प्रशासन रामजी को ही अपना राजा मान कर काम करते हैं।





मस्तानी 


महाराज छत्रसाल एवं रूहानी बाई बेगम की सुपुत्री थी जब  मोहम्मद खान बंगश ने आक्रमण किया तो नब्बे वर्ष के छत्रसाल को हरा कर गद्दी पर बैठा। तब छत्रसाल ने बाजीराव पेशवा से मदद करने को कहा इस पर पेशवा औरछा आए और खोया राज्य फिर से दिलाने मे छत्रसाल की मदद की। इसके पश्चात मस्तानी पेशवा की दूसरी पत्नी बनी।



ओरछा मे एम पी टुरिज्म द्वारा लाइट एंड साउंड शो जरूर देखें। साथ ही मुख्य बाजार में मीट्टी के बड़े बड़े कुल्हड़ में इलायची वाले दूध का भी स्वाद ले। शीशमहल व लक्ष्मीनारायण मन्दिर की रचना भी अद्भुत है। किराए पर सायकल लेकर आप नदी के पार जंगलो का भी भ्रमण कर सकते हैं। ठहरने के लिये ओरछा मे होटलो की कमी नहीं हैं, मगर गाईड जरूर ले ताकि आप ओरछा के गौरवमयी इतिहास से अवगत हो सकें।


अभी के लिए इतना ही।


ईश्वर पर आस्था रखते हुए आनंदित रहिए और अच्छा कुछ पढ़ते रहिए…


कार चलते समय सीट बैल्ट ज़रूर बांधे....


KEEP READING


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