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बुधवार, 14 अगस्त 2019

संदकफू गुरुडम दार्जिलिंग ट्रेकिंग प्रोग्राम ( With YHAI )

संदकफू गुरुडम दार्जिलिंग ट्रेक...

( यूथ हॉस्टल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के साथ दार्जिलिंग, संदकफू, गुरुडम में  आठ दिन का ट्रेकिंग प्रोग्राम )

 न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग तक घुमावदार रास्तों पर टाटा सूमो का दमदार इंजिन सड़क पर अपनी पकड़ बनाता हुआ आपको मैदानों और  शहरो की भीड़ से पहाड़ों की दुनिया में, सुकून और आनंद की दुनिया में ले  चलता है। जब आप खिड़की से बाहर  नज़र डालते हैं, तो अपने आपको और  अपनी दुनियां को  भूल जाते हैं। तब आप  अपनी नज़रों के सम्मुख   गुज़रते दृश्यों को अपने  जेहन में समाने की  कोशिश  करते हैं मगर नाकामयाब रह जाते हैं, क्यों कि  ये पहाड़ों के  अंतहीन सिलसिले आपकी कल्पना से भी ज्यादा खूबसूरत हैं। एक बार आरंभ होने के बाद  ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेते और फिर थक हार कर आप अपनी  आँखें बंद कर बस ध्यानस्त  हो सब कुछ महसूस करना चाहते हैं और तब  कल्पना में कुछ अंश ह्रदय में उतार  पाते हैं।   पहाड़  आसमानों से मिलनेे  लगते हैं, और दार्जिलिंग पहुँचते पहुँचते  आप बादलों की सैर कर रहे होते हैं।

जनाब दार्जिलिंग है ही इतना खूबसूरत. यदि यह सब मैंने कहा तो ज्यादा तो नहीं कहा है। उस पर यूथ हॉस्टल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया और उनके समर्पित वालेन्टियर की एक सम्पूर्ण टीम  सब कुछ आसान कर देती  है।

हो सकता है आप विवाह के पश्चात  पहाड़ों पर गए हो और हाथ में हाथ डाले मुख्य मार्गो, बाज़ारों, और चौरास्तों पर चहलकदमी कर आपने अपने सफ़र को खत्म कर लिया हो लेकिन, जब तक आप मुख्य मार्ग छोड़ कर पगडंडियों से या उस जगह से नहीं गुज़रते जहाँ  रास्ते है ही नहीं, तब तक आप वो सब महसूस ही नहीं  कर पाते जिसके लिए ये स्थान  मशहूर हैं और यह सब  आप अकेले नहीं कर पाते यहाँ भी टीम वर्क काम करता है। जब तीस चालीस या फिर पचास ट्रेकर्स एक  साथ चलते हैं, आगे पीछे दो गाइड होते हैं, रहने के लिए लकड़ी से बने बड़े बड़े कमरे और हर जगह गर्म खाना तैयार मिलता है , तब बात कुछ और हो जाती है। जी हाँ मैं  बात कर रहा हूँ YHAI के साथ आठ दिनों के दार्जिलिंग संदकफू ट्रैकिंग प्रोग्राम की। 

अभी रात के 2. 58  हुए है। मैं और नीलम न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन पर ऊनींदे हुए बैठे है। 

"आज ठण्ड बहुत ऊपर से बारह दिसंबर !!"  नीलम ने कहा। 

मैंने कहा, 

"अभी तापमान सात आठ डिग्री होगा , ठंड अभी शुरू ही कहां हुई है ? अभी तो वह मुहावरा  भी चरितार्थ होने वाला है , जिसे कहा जाता है,  "हड्डियों को जमा देने वाली ठंड...."मगर उसमे अभी कुछ दिन बाकी है। हम यहाँ मायनस दस डिग्री तक की ठंड महसूस करने आये है..."

यह सुन कर भी उसके चहरे का रंग नहीं बदलता। उसके चेहरें पर अब भी वहीँ सुकून है। उसने सोचा होग़ा  शायद मैं  मज़ाक कर रहा हूँ, मगर मैं  जानता हूँ यदि मैं  मज़ाक न भी कर रहा होता  तो भी यही सुकून उसके चहरे पर होता। उसे  पूरा विश्वास है,  जितना अपने ऊपर, उतना ही मुझ पर भी।

इस देश का विस्तार ज़रा महसूस तो कीजिये  विदेश होता तो अभी तक हम  कितने ही  देश पार कर चुके होते। ख़ैर  इस वक्त कुछ नहीं हो सकता, सिवाए सुबह तक इंतज़ार के। दार्जिलिंग के लिए पहली टाटा सूमो छह या सात बजे मिलेगी। रिटायरिंग रूम में  एक चाय वाला मुस्तैदी से अपने काम पर लगा हुआ है। उसके लिए रात दिन कुछ नहीं बस ग्राहक ही सर्वोपरीय है।

"भाई ज़रा चाय देना" मैं कहता हूँ। 

छह बजने को है, मैं  स्टेशन के बाहर मुआयना करने चला आता हूँ, सामने लगी गुमटियों में कुछ हलचल है। कहीं कहीं से धुँआ भी उठ रहा है। गुमटी वाले लड़के  ने पत्थर के कोयले सुलगा लिए हैं,  इसे पूरी तरह आग पकड़ने में समय लगता है। दार्जिलिंग सब के लिए तफरी की जगह नहीं है। गरीब आदमी के लिए सब जगह एक सामान है। समस्याओं का एक गुबार हर जगह उसके साथ होता  है। तभी गुमटी वाला लड़का मेरे पास आता है कहता है,

"आपको जाना है दार्जिलिंग  ? वो सूमो वाला पहले जाएगा।"

सूमों वाले से बात हो चुकी है। वो सवारी भरते ही चल देगा। अब सूमों में सवारी होती ही कितनी है  ? हमें आज ही यूथ हॉस्टल को  रिपोर्टिंग करनी है।

दिसंबर में गर्मियों के बनिस्बत कम लोग आते हैं। YHAI द्वारा ठण्ड में ट्रेकिंग आयोजित करने के दो कारण है, पहला लोकल्स के लिए  आय का ज़रिया बनाये रखना, दूसरा यदि ट्रेकर्स को बर्फ़बारी देखना हो और गिरती हुई बर्फ और कोहरे में ट्रेकिंग का अनुभव लेना हों  तो यह सब मई जून में संभव नहीं है।

तो दिसंबर है और  धूप  खिल चुकी है। सवारी भर कर सूमों वाला चल पड़ता है। हम अभी लम्बे लम्बे मैदानों से गुज़र  रहे हैं। आगे सेना की  गाड़िया खड़ी  हैं। सेना के टेंट भी लगे हैं। शायद   केन्टोनमेन्ट एरिया  है। सेना देश की सुरक्षा में मुस्तैद है। देश सेना के इन्ही हाथों में सुरक्षित है।

इसी बीच ड्रायव्हर ने  कोई पहाड़ी गाना लगा दिया है। करीब एक घंटे तक चलने के पश्चात वह  एक होटल पर चाय पानी  के लिए जीप रोक देता है। एक एक कप चाय पीकर ताज़गी आ जाती है। यहाँ के बागानों की ताज़ी  पत्तियों से बनी चाय का आनंद  अगले दस बारह दिनों तक रहेगा।

Day 1:

Reporting at Base Camp, (6700 ft.) after 3 p.m. 

दार्जिलिंग बेस कैंप ( 6700 ft. ) पर YHAI के एक सीनियर वॉलेंटियर ने कहा,

 "आप सबको आज  रिपोर्टिंग करनी है। अपना ID Card , रिपोर्टिंग  लेटर, निकाल कर  तैयार रखिये। रिपोर्टिंग समय है, दोपहर तीन बजे से। लेकिन पहले सुबह ग्यारह बजे डॉक्टर्स मेडिकल चेकअप  करेंगे। पूरे दिन का शेड्यूल एक नोटिस बोर्ड पर चस्पा कर दिया है, जो  सभी केम्प पर एक जैसा होगा।" 

YHAI कड़े  अनुशासन के लिए भी जाना जाता है। सिर्फ चौबीस घंटो में सभी ट्रेकर्स इस अनुशासन का पालन करने के लिए तैयार है।

संपूर्ण भारत से रोड, ट्रेन और फ्लाईट से ट्रेकर्स यहाँ पहुंचेंगे। बागडोगरा हवाई अड्डा 90 किलोमीटर की दूरी पर है। आज का दिन रिपोर्टिंग में चला जाता है और कल का पूरा दिन  नए वातावरण के अनुकूल होने Acclimatization) के लिए निर्धारित है।

YAHI के सभी ट्रेक खासकर ऊँचाइयो वाले, इनमे एक अतिरिक्त दिन रूकने का प्रावधान है। जिससे मैदानी भागों से आने वाले ट्रेकर्स सर्वथा नए वातावरण के अनुकूल हो सके। इस तरह एक पूरा  दिन दार्जिलिंग घूमने के उपयोग में आ जाता है।

शाम होते होते सभी पचास ट्रेकर्स आ जाते हैं। आठ स्टूडेंट का एक ग्रुप आय. आय. टी. देहली से आया है।  कुछ एम्प्लॉई हैं कम्पनीज़ में तो कुछ सरकारी बैंक में कार्यरत है। ये सम्पूर्ण भारत से हैं। 

YHAI के प्रोग्राम में भाग लेने के लिए भारत सरकार ने अलग से छुट्टी का प्रावधान रखा है। यह एक "नॉन प्रॉफिटेबल संस्था" है, जहाँ सभी लोग वालियंटर हैं।      

Day 2:

Training/Acclimatization/ Orientation : 

YHAI के एक  वालेंटियर और एक  एक गाइड आधे दिन के लिए दार्जिलिंग के ख़ास ख़ास वेन्यू  लिए  ट्रेकर्स को  लिए चलते हैं।  चूँकि कल यहाँ से अगले कैम्प को जाना है अतः शाम का समय  जरूरी चीज़े खरीदने के लिए मुफीद  है।

दार्जिलिंग का शांति पगोडा ध्यान में डूब जाने के लिये है।  यह पगोड़ा सभी जातियों और पंथों के लोगों की मदद करने के लिए एवं  विश्व शांति के  लिए सभी को  एकजुटता  प्रदान करने के लिए निर्मित  किया गया है।  इसे जापान के एक बौद्ध भिक्षु और निप्पोनज़ान-म्याऊजी बौद्ध ऑर्डर के संस्थापक , निकिडत्सु फ़ूजी (1885-1985) के मार्गदर्शन में बनाया गया था।  शिवालय की आधारशिला 3 नवंबर 1972 को निकिडत्सु फूजी द्वारा रखी गई थी, और 1 नवंबर 1992 को इसका उद्घाटन किया गया था। शिवालय को एम. ओका. द्वारा डिजाइन किया गया था, और इसके निर्माण में 36 महीने लगे थे। इसमें मैत्रेय बुद्ध सहित बुद्ध के चार अवतार है। पैगोडा की ऊंचाई 28.5 मीटर (94 फीट ) और व्यास 23 मीटर (75 फीट) है. पगोडा दार्जिलिंग पहाड़ियों की ढलान पर स्थित है, जो दार्जिलिंग शहर से बस लगा हुआ है।  

वर्तमान में, लगभग पचास हज़ार विदेशी और पांच लाख घरेलू पर्यटक हर साल दार्जिलिंग आते हैं, और "क्वीन ऑफ द हिल्स" के रूप इसकी ख्याति है. दार्जिलिंग भारत के सभी पर्यटन स्थलों में से तीसरा सबसे अधिक गुग्लड यात्रा गंतव्य है। इसकी पर्यटन दर साल दर साल बढ़ रही है। मोमोस, स्टीम्ड स्टिक राइस, और ज्यादातर स्टीम्ड खाद्य पदार्थों के लिए एवं  प्राकृतिक सुंदरता  देखने के लिए कई पर्यटक इस जगह पर आते हैं।

दार्जिलिंग चौरस्ता स्क्वेयर पर भारी भीड़ है, यह क्रिसमस का समय है। द फर्स्ट नोयल। क्रिसमस केरोल में शामिल होते है। यह अद्भुत संस्कृति है। वे सभी प्रभु यीशू का गुणगान कर रहे हैं। वास्तव में हम लकी है, हमें इस संस्कृति से रूबरू होने  मिला। मैंने उनके कुछ पिक्स लिए है ऊपर देखें। ( The First Noel )

दार्जिलिंग "टॉय ट्रेन" के लिए भी जाना जाता जाता है। न्यू जलपाईगुड़ी से 88 किमी लंबी दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे सिलीगुड़ी से 77 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 55 तक पहुंचा जा सकता है. दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे 2 फीट की नैरो-गेज रेलवे है जिसे यूनेस्को द्वारा 1999 में " विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया। यह सम्मान पाने वाला दुनिया का दूसरा रेलवे बन गया है। दार्जिलिंग का बागडोगरा , गंगटोक और काठमांडू और पड़ोसी शहर कुरसेओंग और कलिम्पोंग से सड़क संपर्क है. निकटतम हवाई अड्डा बागडोगरा 90 किमी दूर है।

एक रोपवे हैं जिससे चाय बागान के विहंगम दृश्य देखे जा सकते हैं। इसे फरवरी 2012 में  फिर से खोला गया। 2011 की जनगणना के  अनुसार , दार्जिलिंग शहर की जनसंख्या 1,32,016 है।

1980 में  निर्मित तिलक मैदान क्रिकेट और दूसरे आयोजनों के लिए काम  आता हैं. इसकी सरंचना 1988 में पूर्ण करते हुए इसे 35000 लोगो के बैठने लायक बनाया गया। इसे कंचनजंघा स्टेड़ियम  नाम दिया गया। 

Day 3: Transfer from Darjiling to Dhotrey (8500 ft.) by Jeep then after trek to Tumling  7 KM (10000 ft.) Lift 1500 ft.  

08.00am 

40 मिनिट का एक ब्रीफिंग, जिसमे  ट्रैकिंग में रखी जाने वाली सावधानियों के सम्बन्ध में विवरण दिए जाते हैं। इसके पश्चात  पैक्ड लंच ले कर जीप दार्जिलिंग शहर के बाहर धोत्रे ( 8500 ft.) तक ट्रैकर्स को छोड़ देती है। समूह में  से ही एक  ट्रेकर को  टीम लीडर चुन  लिया जाता है। दो गाइड दिए जाते हैं। इस तरह पहला ट्रेक  तुमलिंग ( 10000 ft. ) तक  प्रारम्भ होता है। यह 7 किलोमीटर का है। आज की रात तुमलिंग में विश्राम करना होगा।

तुमलिंग नेपाल भारत  की सीमा पर स्थित है। रहने के लिए गुरुडम  तक लकड़ी के मकान बने है।  प्रत्येक कमरों में दस से बारह बेड लगे होते हैं। साथ लगे किचन में खाने और सुबह के नाश्ते का प्रबंध होता है। दरअसल धोत्रे से रिंभीक तक ट्रेकर्स  अक्सर ट्रेकिंग करते रहते  हैं।

Day 4 Trek from Tumling ( 10,000 ft. ) to Kalapokhari ( 10196 ft.) 13 km Lift 196 ft.

खिड़की से कुछ लोगों ने देखा। बाहर बारिश हो रही है। खिड़की पर ओस जमी है। कुछ साफ़ दिखाई नहीं दे रहा है लेकिन ध्यान से देखने पर ज्ञात होता है बारिश के साथ बर्फ भी गिर रही है। मानो  मन मांगी  मुराद मिल गई हो। बारिश रूकने का  इंतज़ार करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। YHAI  के अपने नियम है। हमारे पास रेन कोट है वरना बर्फ शरीर की गर्मी से पानी बन कपड़ो को भिगो देगी और भीगे हुए कपड़े सिर्फ फिल्मों  में अच्छे लगते हैं। यहाँ वे तबियत खराब कर  सकते हैं। आज 13 किलोमीटर चलना है, रास्ता समतल है, खूबसूरत है, मगर यहाँ का मौसम  एक सा नहीं रहता। फिल्म के दृश्य की तरह पल पल बदलता रहता है। अब स्नोफॉल तेज हो जाता है।  रेनकोट पर बर्फ ही बर्फ है। कुछ बर्फ कॉलर पर जम  जाती है। यह बर्फ़बारी तकरीबन पाँच छह कि. मी. तक चलती रहती है। यहाँ आना सफल हो गया है। 

अब हमें नेपाल बॉर्डर क्रॉस कर ज़रा अन्दर तक जाएंगे और फिर घूम कर भारत की सीमा में आ जाएंगे। अभी भारत के रिश्ते  नेपाल से अच्छे है, तो कोई दिक्कत नहीं है। नेपाल के इस होटल का मालिक हमारे गाइड का दोस्त है उनकी  दोस्ती सीमाओं  को नहीं मानती। गाइड  ने यहाँ कुछ देर रूकने को कहा है। होटल वाला  नूडल्स, ऑमलेट, मोमोस, चाय और कॉफी तैयार करने में लगा है। इन दिनों वह खुश है रोज़ चालीस पचास ग्राहक जो आ  रहे हैं। भारतीय मुद्रा में भुगतान सहर्ष स्वीकार है। वह भारतीय रूपये ले लेता है। मैंने उससे कुछ नेपाली रूपये और सिक्कें ले लिये हैं। तो इस तरह मैं चंद घंटो के लिये एक विदेशी पर्यटक हो जाता हूँ। 

कुछ देर रुकने के पश्चात कारवाँ  फिर आगे चल पड़ता  है। हम फिर नेपाल सीमा से निकल कर भारत की सीमा में प्रवेश कर चुके हैं। 

अब तक  बर्फबारी ख़त्म हो चुकी है और तेज हवाओं में कपड़े  भी सूख चुके हैं। ये लीजिये अब बस इसकी ही कमी थी। ये मिस्ट है। जंगल घने कोहरे में अदृश्य हो चुके हैं, मगर ये कोहरा नहीं है, ये बादल हैं, इतने ठंडे हो चुके हैं कि जमीन पर आ चुके हैं। यह अनुभव करने के चीज़ है. ऐसा मौसम  4 - 5 कि. मी. तक साथ साथ चलता है।

कुछ लोग पीछे छूट गए हैं।  यहाँ  गाईड ने सभी को कुछ देर रूकने को कहा है। तभी पीछे से किसी स्कूल की लड़कियों का एक  समूह नज़र आता है। उनका रंग गोरा है  और वे सभी ऊँचे  कद की हैं। यूनिफार्म पहने वे बिल्कुल अनुशासन में कतारबद्ध चल रहीं हैं,अब लड़कियाँ हैं तो बाते तो होंगी ही मगर धीरे धीरे। कभी कभी उनकी हँसी इस अरण्य में गूँज जाती है। उनकी मेडम टूटी फूटी अंग्रेजी में बात करती हैं, वे स्पेन से आई हैं। यह फख्र की बात है।  उन्होंने ट्रेकिंग के लिये हमारे देश को  चुना। वे हमसे आगे निकल जाती हैं । उनके पीछे दस बारह   ट्रेकर्स का एक और समूह है। ये सभी  कोलकता से  हैं। 

ये खूबसूरत जंगल कोहरे के साथ मिल कर गहरे अंतस में उतर आये  हैं। मैं  याद करता जा रहा हूँ, हर बात करीने से दिमाग के खानों में जमी है, और उंगलिया कम्प्यूटर पर उतनी ही  तेज़ी से टाइप करती जा रही हैं। ठीक उस तरह जैसे कोई माहिर लायब्रेरियन मिनटों  में आपकी किताब ढूंढ कर आपके  हाथो में रख देती है। 

लगता है आज यह 13 कि. मी. यह  ट्रेक सारे अनुभव करवा कर ही दम  लेगा. सुबह निकलने के साथ ही स्नो ने स्वागत किया फिर  मिस्ट ने और अब  रही सही कसर इस बारिश ने पूरी कर दी। मगर मुझे इससे भी कोई परेशानी नहीं है। आखिर हम यही अनुभव लेने के लिए तो आये हैं।

रेन कोट फिर  पहन लिया जाता है। आगे  कोई रेस्तोरां  है, यह  लंच टाइम  है। लंच में सुबह का दिया पैक्ड लंच,और रेस्तोरां के गरमागरम नूडल्स और ऑमलेट हैं।

तुमलिंग से कालीपोखरी तक.....क्या कहूँ उस ईश्वर के बारे में उसकी अप्रितम, कलाकारी...ओहहह...कतरा कतरा जैसे रच रच कर बनाया है उस परवरदिगार ने।

लेकिन उसकी नायाब कृति देखने के लिए इंसान  बनाये और वह भी उपर बैठा सोचता होगा कितने लोग यह  सब देखने के लिए समय निकाल पाते हैं ?

एक पोखर है जिसका पानी गहरे रंग का है तो नाम हुआ कालीपोखरी। तो आज यही पर विश्राम। 

अब ठण्ड  बढ़ने लगी है। YAHI रोज़ शाम कैम्प  फाॅयर करता है। जिसमे फाॅयर नहीं होती। यह लकड़ियों को जलाने से बचाने के लिये है। मगर ठण्ड को देखते हुए कुछ सिगड़िया जला दी जाती हैं। खाना गर्म है। मिनटों में चट कर लिया जाता हैं, लाइट कही नहीं है मगर कुछ ट्रेकर्स कैम्प फायर कर रहें हैं वे अभी भी शक्ति से भरे हैं। 

9. 30 के पश्चात कोई जागता हुआ नज़र नहीं  आता। वे सभी नींद के आगोश में जा चुके हैं।

Day 5: Trek from Kalipokhri (10196ft.) to Sandakphu (11941 ft ) lift 1745ft. 6 KM 

आज सिर्फ 6 कि.मी. चलना है। मगर 1745ft. चढ़ना है। यह खड़ी चढ़ाई है। पश्चिम बंगाल  की सबसे ऊँची जगह पहुँचने  के लिये इतना कष्ट तो उठाना ही होगा। यह स्थान इस ट्रेक की जान है। 

संदाकफू  पहुँचते पहुँचते  शाम के साढ़े चार बज ही जाते हैं। संदाकफू पश्चिम बंगाल शिखर पर एक छोटा सा गाँव है। यहाँ से  दुनिया की पांच सबसे ऊंची चोटियों में से चार, एवरेस्ट , कंचनजंगा , ल्होत्से और मकालू को  देखा जा सकता है।  सारे मकान लकड़ी के बने हैं।  पास में एक रेस्तोरां  है। खानसामा गरमागरम  चाय और  सूप तैयार करने में लगा है।

  फिलहाल तापमान है  -1 जो रात तक  न्यूनतम -10 तक चला जाता है। पहले चाय फिर 6. 30 पर सूप और 7 बजे डिनर । इस होम स्टे में सभी को दो दो कम्बल दिए गए हैं। ये कम्बल लद्दाख और तिब्बत से मंगवाए गए हैं। यह भी बताया गया है कौन सा कम्बल नीचे और कौन सा  ऊपर रखना है। होम स्टे के बाहर जाने पर  ग्लोब्स से हाथ निकालने की सख्त मनाही है, फ्रॉस्ट बाईट  खतरा है।

 मैं खिड़कियों से बाहर देखता हूँ,  कोई देढ़ फ़ीट बर्फ जमी हैं।

YHAI के सभी ट्रेक में आजकल लडकिया युवतियाँ  और कुछ उम्र दराज महिलाये भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने लगी है। उनके ठहरने का इंतजाम अलग होता है। यदि टेंट है तो उनके लिए संख्या के अनुसार दो तीन या चार टेंट होते हैं। जैसा की मैने बताया हमें लकड़ी के बने होटलों में ठहराया गया है। सबमें टॉयलेट्स की सुविधा है।

प्रत्येक ट्रेक मे ट्रेकर्स की संख्या चालीस पचास रखी जाती है।  दरअसल YHAI के सभी ट्रेकिंग प्रोग्राम मुख्य मार्ग और शहरी क्षेत्रों से दूर होते हैं अतः समूह में ही सफलता से पूर्ण  होते हैं।           

        संदाकफू  में रात का तापमान  -10  डिग्री  और हड्डियों को जमा देने वाली ठण्ड में भारतीय सेना के जवान  

दिन और रात लगातार अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यहाँ पानी की कमी नहीं है जितना चाहिए बर्फ एकत्र कर गर्म कर लिया जाता है।

सूर्योदय देखने के लिए सुबह उठना एक मुश्किल काम है, मगर जब सूर्य की रोशनी हिम से ढके पहाड़ों को छूती है, तब कई रंग देखने को मिलते हैं, तीस हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर पहाड़ों से बादलो का  मिलन साफ़ साफ़  देखा जा सकता है  तब पांच बजे उठना सार्थक हो जाता है।

Day 6: Trek from Sandakaphu  to Gurdum (9514 ft) 14 KM (fully decending)

संदाकफू से 14 कि. मी. की ढलान पर चलते हुए  पहाड़ों की तलहटी में बसी एक जगह। एक और  होमस्टे। प्रकृति का यह आखिरी खजाना। घना जंगल जगह जगह उम्र पूर्ण कर चुके वृक्षों के सूख चुके ठूठ अभी भी खड़े हैं, हालाँकि उनमें से आत्मा निकल चुकी हैं  मगर  जैसे नयी कोपलों को जंगल में पनपने का हौसला दे रहें हों।  सूख चुके ये ठूठ अपना कर्तव्य निभाते हुए और भी  सुन्दर नजर आते हैं... 



Day 7: Trek from Gurudum  to Rimbhik (7498 ft .) via Sirikhola (3572 ft), 11 KM. Certificate Distribution and Recreation Activity... 


सभी उत्साही ट्रेकर्स को सर्टिफिकेट्स दे दिए गए हैं। इस ट्रेक को सौ प्रतिशत ट्रेकर्स ने सफलता के साथ  पूर्ण किया... 


Day 8: Transfer by Jeep to Darjeeling Base Camp (52KM.) Check out. 


अभी दिन के ग्यारह बजे हैं। हमारी ट्रेन कल है। आज बचा हुआ दार्जिलिंग भी देख लेते हैं। मेन स्क्वैयर एक फुटबॉल के मैदान जितना बड़ा है।  पास में 150 वर्ष पुरानी एक होटल हैं। यह कभी अंग्रेजो का  दफ्तर हुआ करता था। यहाँ बहुत भीड़ भाड़  है। पास में  एक मॉल भी है। इसमें थोड़ी देर घूमने के बाद मुझे महसूस होता है, मैं अपनी पुरानी ज़िन्दगी में लौट आया हूँ। ठण्ड अभी कम है, मगर जो जेहन में घुस आई है उसे जाने में वक्त लगेगा... 


Total round Trekking Route- 51 km. Approx. 


YHAI प्रति वर्ष दो बार यहाँ ट्रेक आयोजित करता है। YHAI की साईट से इसकी बुकिंग करवाई जा सकती है।


फिलहाल के लिए इतना ही लेकिन आगे  सफर जारी रहेगा...


ईश्वर में आस्था रखिए और खुश रहिये.....


पढ़ते रहिये..... यह अच्छा हैं....


साहित्य स्वस्थ मन के लिए...


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