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गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

देवास

देवास

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।

ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।









इंदौर से लगभग पैंतीस किलोमीटर पर स्थित बसा एक प्राचीन शहर है देवास, देवास का अर्थ है, देव का वास। माता की टेकरी पर यह शाब्दिक अर्थ बिल्कुल सही बैठता है। शायद माता के वास की वजह से ही यह नाम पड़ा हो। वैसे देवास शहर के अपने कई चेहरे हैं और हर चेहरा अपना एक अलग व्यक्तित्व रखता है, लेकिन मैं यहाँ सबसे पहले माता की टेकरी से ही अपनी बात प्रारंभ करूँगा। जैसे जैसे हम माँ के इस स्थान के संम्बध में जानने की कोशिश करते हैं, रहस्य परालौकिक और अविश्वसनीय  दुनिया में उतरते चले जाते हैं।

इंदौर ने जैसे अपने वृहत होने का सारा बोझ अपने सीने पर उठा रखा हो। तो वो आपाधापी, बेलगाम होते ट्रैफिक से उपजा पॉल्यूशन देवास में बनिस्बत कम है। तो अभी भी आपको वो सत्तर अस्सी के दशक की आत्मीयता, खुलापन एवं एक ठहराव यहां मिल जाता है, जो कभी इंदौर में पाया जाता था। देवास के चारों और बने बायपास या रिंग रोड ने शहर को बाकी बेवजह के ट्रैफिक से निजात दिलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

उस वक्त जब शहरों की खूबसूरती को तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या का सैलाब लीलता जा रहा है, लोग बंगलौर, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में बसने से कोताही करने लगे हैं, इस तरह के छोटे और मध्यम शहर अपना सौंदर्य किस तरह तक बचा पाते हैं, इस पर सरकार को विचार करना चाहिए।



यह स्थान सिर्फ देवी का मन्दिर ही नहीं बल्कि तपस्वियों की सिद्ध भूमि भी रहा है। बहुत कम लोग जानते हैं, राजा भर्तहरी उज्जैन से भूमीगत सुरंग से देवी दर्शन के लिये आया करते थे। 

देवास टेकरी पर स्थित माँ भवानी का यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। लोक मान्यता है कि यहाँ देवी माँ के दो स्वरूप अपनी जागृत अवस्था में हैं। इन दोनों स्वरूपों को छोटी माँ और बड़ी माँ के नाम से जाना जाता है। बड़ी माँ को तुलजा भवानी और छोटी माँ को चामुण्डा देवी का स्वरूप माना गया है। यहाँ के पुजारी बताते हैं, बड़ी माँ और छोटी माँ के मध्य बहन का रिश्ता था। एक बार दोनों में किसी बात पर विवाद हो गया।विवाद से क्षुब्द दोनों ही माताएँ अपना स्थान छोड़कर जाने लगीं। बड़ी माँ पाताल में समाने लगीं और छोटी माँ अपने स्थान से उठ खड़ी हो गईं और टेकरी छोड़कर जाने लगीं। माताओं को कुपित देख माताओं के साथी श्री हनुमानजी जो  माता का ध्वज लेकर आगे और भेरूबाबा माँ का कवच बन दोनों माताओं के पीछे चलते हैं, दोनों ने  उनसे क्रोध शांत कर रुकने की विनती की। मां का क्रोध देख हनुमान जी भी डर गए,  इस समय तक बड़ी माँ का आधा धड़ पाताल में समा चुका था। वे वैसी ही स्थिति में टेकरी में रुक गईं। वहीं छोटी माता टेकरी से नीचे उतर रही थीं, वे मार्ग अवरुद्ध होने से और भी कुपित हो गईं मगर  जिस अवस्था में नीचे उतर रही थीं, उसी अवस्था में टेकरी पर रुक गईं। इस तरह आज भी माताएँ अपने इन्हीं स्वरूपों में विराजमान हैं।






यहाँ के लोगों का मानना है कि माताओं की ये मूर्तियाँ स्वयंभू हैं और जागृत स्वरूप में हैं। सच्चे मन से यहाँ जो भी मन्नत माँगी जाती है, हमेशा पूरी होती है। यह पहला ऐसा शहर है, जहाँ दो वंश राज करते थे, पहला होलकर राजवंश और दूसरा पँवार राजवंश। बड़ी माँ तुलजा भवानी देवी होलकर वंश की कुलदेवी हैं और छोटी माँ चामुण्डा देवी पँवार वंश की कुलदेवी हैं। टेकरी में दर्शन करने वाले श्रद्धालु बड़ी और छोटी माँ के साथ-साथ भेरूबाबा के दर्शन अनिवार्य मानते है। नवरात्र के दिन यहाँ दिन-रात लोगों का ताँता लगा रहता है। इन दिनों यहाँ माता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।



भक्ति, साधना और उपासना के महापर्व चैत्र नवरात्रि पर मध्यप्रदेश के देवास में स्थित तुलजा माता और चामुंडा माता मंदिरों में भक्तों की भीड़ आराधना के लिए पहुंचने लगती  है। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन रविवार से ही मंदिर में हजारों भक्तों के आने का सिलसिला प्रारंभ हो जाता हैं। चैत्र नवरात्रि पर मंदिर में दर्शनों के लिए आने वाली भीड़ को देखते हुए देवास जिला प्रशासन द्वारा विशेष व्यवस्था की जाती है। सुरक्षा के लिए सैकड़ों पुलिसकर्मियों को भी मंदिर में तैनात किया जाता  है। टेकरी पर पेयजल, सुविधाघर और चिकित्सा सेवा की भी व्यवस्था की गई है।


ऐसा बताया जाता है कि देश के अन्य शक्तिपीठों पर माता के शरीर के हिस्से गिरे थे। लेकिन, यहां टेकरी पर माता का रुधिर गिरा था। इस कारण मां चामुंडा का प्राकट्य हुआ।  दो हज़ार वर्ष पूर्व  महाराज विक्रमादित्य के भाई भर्तहरि भी  यहां तपस्या कर चुके हैं। ऐसे में मंदिर की प्राचीनता का कोई प्रमाण नहीं है। मंदिर अनादिकाल से है। 

ऐसी मान्यता है कि अभी भी सूक्ष्म रूप में कई दिव्यात्माएं इस मंदिर में दर्शन को आती है।टेकरी की तलहटी में स्थित श्री शैलनाथ धूनी गोरख नाथ संप्रदाय के संत शैलनाथ महाराज के अनुयायियों के लिए पूजा स्थल है। शैलनाथ महाराज जयपुर के एक शाही परिवार से ताल्लुक रखते थे और बाद में गोरख नाथ संप्रदाय के योगी बन गए, जो अपने बुढ़ापे में देवास में रहते थे।

देवास के मीठा ताल के पास पंवार की छड़ें क्षेत्र में मराठा वास्तुकला के उदाहरण हैं।








देवास में केलादेवी या कैलादेवी मंदिर राज्य में सबसे बड़ा है।यह मिश्री लाल नगर (आगरा बॉम्बे रोड), दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। इसकी स्थापना दिसंबर 1995 में व्यवसायी मन्नूलाल गर्ग ने की थी। यह आधुनिक मंदिर दक्षिण भारतीय कलाकारों द्वारा बनाया गया था। इसमें हनुमानजी की 51 फुट (16 मीटर) की प्रतिमा है। मूल कैला देवी मंदिर राजस्थान के करौली जिले में कालीसिल नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर, करौली राज्य, कैला की पूर्व रियासतों के टटलरी देवता को समर्पित है।




महादेव मंदिर 1942 में देवास शासक श्रीमंत सदाशिव राव महाराजा (कासे साहेब) द्वारा निर्मित शंकर गढ़ में एक मंदिर है। यह मंदिर शहर के दक्षिण में एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है।
महाकालेश्वर मंदिर, बिलवाली - बिलवाली गाँव देवास से 3 किमी उत्तर में स्थित है।




माता की टेकरी पर पहुंचने हेतु दो प्राचीन पैदल रास्ते पूर्व एवं  पश्चिमी किनारों से हैं, जिस पर चलते हुए प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन करते हुए मुख्य मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

अभी कुछ ही वर्ष हुए दर्शनार्थियों की सुविधा को देखते हुए  एक रोप वे का निर्माण किया गया है, लेकिन जो आनंद पैदल मार्ग से चलने में है वो दो मिनिट की रोपवे यात्रा में कहाँ ?  मगर उम्र दराज़ लोगों के लिए  यह एक बढ़िया अनुभव  हो सकता है। प्रशासन ने मिटटी के कटाव को रोकने हेतु सम्पूर्ण पहाड़ी पर  वृक्षारोपण किया है। इससे यह क्षेत्र मन को भाने वाला बन गया है।

ऊपर पहुंचते ही शहर के  विहँगम दृश्य के भी दर्शन होना प्रारम्भ हो जाते हैं।  

सर्वप्रथम बैंक नोट प्रेस जहां भारतीय  करेंसी  छपती है। इसके पश्चात पुलिस लाइन के समीप कुश्ती का अखाड़ा, जो अभी अपने भग्नावेश में स्थित है। एक और जीर्ण शीर्ण भवन नज़र आता है, जहां हाथियों को रखा जाता था। 

परिक्रमा पूर्ण करते करते शहर नज़र आने लगता है।


2.

शहर में कई औद्योगिक इकाइयाँ हैं, जो हजारों श्रमिकों को रोजगार प्रदान करती है। सबसे बड़ी कंपनियों में टाटा, किर्लोस्कर, अरविंद मिल्स, एस कुमार्स, टाटा-कमिंस, गजरा गियर्स, गेब्रियल इंडिया लिमिटेड, सन फार्मा इंडस्ट्रीज लिमिटेड, कपारो ट्यूब्स और जॉन डीरे शामिल हैं। देवास को भारत की सोया राजधानी के रूप में जाना जाता है और यह देश में सोयाबीन प्रसंस्करण उद्योग का एक प्रमुख हिस्सा है।

लक्ष्मी नारायण भुवन क्लब... 

शहर की पहचान है। यदि खेल और पठन मानसिक स्वास्थ्य प्रदान कर सकते हैं, तब इसका महत्व बढ़ जाता है। एक शांत लायब्रेरी, सुकून देने वाले बिलियर्ड्स टेबल पर दोस्तों का जमघट और खुले आकाश के नीचे लॉन पर टेनिस का लुत्फ उठाते  हुए शहर के लोग देखे जा सकते हैं। एक इंडोर बैडमिंटन हाल और टेबल टेनिस देवास वासियो के  आनंद में  वृद्धि  कर देता है यानी रही सही कसर पूरी कर देता है।

सिविल लाइंस क्षेत्र प्रशासन के और धनिक वर्गों के भवनों से आच्छादित है। सम्पन्नता के एहसास के साथ यह मार्ग आगे बनी नई  कॉलोनी और उसके बाद खेतों और खलिहानो की अंतहीन श्रृंखला में परिवर्तित हो जाता है। मुख्य शहर चहारदिवारी  से घिरा था और प्रवेश के लिए जगह जगह विशालकाय द्वार का निर्माण किया गया था। वर्तमान में सिर्फ कुछ द्वार ही बचे है, इन चहारदिवारी को शहर के विकास ने लील लिया है।

देवास की इस पावन भूमि का ही यह प्रताप था कि प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय  संगीत गायक कुमार गन्धर्व, अप्रेल 1924 - 12  जनवरी 1992  ( पूरा नाम : शिवपुत्र सिद्धारमैया कोमलकलिमथ ) ने माता के चरणों में अपना जीवन बिताने का निश्चय करते हुए अपना निवास स्थान के रूप में माता की टेकरी की तलहटी को चुना। "कुमार गंधर्व " नाम एक उपाधि है, जो उन्हें उस समय दी गई थी जब वे एक बालक थे।


अभी के लिए इतना ही।

अगली बार जब आप देवास जाये तो माता की  टेकरी पर अवश्य जाए, सच्चे मन से  मत्था टेके,  पता नहीं आपकी कौन सी मनोकामना पूर्ण हो जाए।

नवरात्री के पावन पर्व पर आप एवं आपके परिवार पर माँ की कृपा बनी रहे। माँ तुलजा और माँ चामुण्डा भवानी  आपकी सभी मनोकामनाए पूर्ण करें। 


खुश रहिए और पढ़ते रहिए...