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मंगलवार, 16 जुलाई 2019

यात्रा वृतांत_3 ( कुछ दिन तो गुजारिये गुजरात में....)

यात्रा वृतांत __3

कुछ दिन तो गुजारिये गुजरात में...
तीसरा एवं अंतिम भाग ( Total words - 5191, estimated reading time 25min.) 

अभी तक आपने पढ़ा मढेरा स्थित "सूर्य मंदिर" एवं "रानी कि वाव" साथ में पटोला साडी म्यूजियम के सम्बन्ध में , अब आगे पढ़िए ...


देखिये मैने इस सफर के कुछ रूल बनाऐ हैं हर संभव मैं इन नियमों का पालन करता हूँ. बेशक यात्रा का आनंद लेने हेतु आप भी करें...

रूल नं. एक….. यदि साथ में ड्रायव्हर नहीं है, तो हर सुबह यात्रा की शुरूआत के पूर्व डीजल, स्टेपनी , टायरो मे हवा सारे टूल्स चैक करना जरूरी है कहीं ऐसा तो नहीं कि पिछली रात आप जिस होटल मे रूके थे, टूल्स वहाँ रह गए हो..

 रूल नं. दो…..डीजल हाफ तक आने पर टैंक फुल कर लेना चाहिये. माना कि हम हाईवे पर है मगर नियम तो नियम हैं .एक बार मैं महाराष्ट्र की ट्रिप पर था. तब हमारी गाड़ी का डीजल खत्म हो गया. कर दिया न ड्रायव्हर ने नियमों का उल्लंघन तो बड़ी मुसिबत हो गई थीं.


रूल नं. तीन….किसी भी कीमत पर हाईवे नहीं छोडना हैं. हाईवे पर आपको ट्राफिक मिलता है, ढाबे और पंक्चर रिपेयरिंग की दुकाने मिलती है..यहाँ आप अकेले नहीं होते..

 रूल नं. चार…..थकान या नीन्द आने पर कार नहीं चलाऐ. देखिये आपका शरीर हर हाल मे आपका साथ देता हैं मगर आप स्पीड मे जा रहे हो तो भी नींद के झोके आ ही जाते हैं.. गाड़ी किनारे खड़ी कर एक पावर नेप ले कर तरोताजा हो कर फिर निकलिये...

रूल नं. पाँच …. हमेशा सीट बैल्ट बांधिये और सतर्कता से वाहन चलाऐ. शाम चार बजे अधिक से अधिक पाँच बजे अपने आपको एवं गाड़ी को विश्राम देते हुए नजदीक किसी होटल की तलाश करें...

24.12.2018  01.30PM दोपहर के एक तीस होना चाहते हैं. दिसंबर की ठंड भले ही हो मगर कार का एयर कंडिशन लगातार पूरे सफर के दौरान चालू रहता है. इतना चलने के बाद भी मेरी ऐंजिल कूल रहती है और मूझे भी कूल रखती हैं,  मैने कहा न एक तीस होना चाहते हैं, हालाँकि हम नाश्ता कर के चले थे मगर घूम भी रहें हैं सो ऊर्जा का ह्रास भी हो रहा हैं. भूख लगना स्वाभाविक हैं. मगर रास्ते पर कोई ढ़ाबा आऐ तो.... बड़ी देर से कोई ढ़ाबा नहीं आया... रास्ता बहोत बढ़िया है. अहमदाबाद भुज ( 500KM ) हाईवे है. सीधा है. सड़क पर ट्रैफिक ज़्यादा नहीं है या यूँ कहा जाएं फोर लेन होने की वजह से गाड़ियां तेजी से निकल जाती हैं ... दूर दूर तक फैले मैदान हैं. जगह जगह पवन चक्कियाँ लगी है , मगर जंगल कही नहीं है .. 

थोड़े समय पश्चात कुछ नजर आता है... हाँ यह ढाबा ही है.... मै ऐंजिल को छाँव में लगा देता हूँ , और लंच आर्डर कर देता हूँ . पैर सुस्ताना चाहते हैं, मगर ये अंदर कमरे से क्या आवाजे आ रहीं हैं. दरवाजा थोड़ा खुला है, बुरके मे कुछ महिलाएं और बच्चे हैं, मगर ये मुस्लिम नहीं बोरे हैं. बोरे महिलाओं के बुरके बिल्कुल काले नहीं होते..वहाँ दाढ़ी वाले कुछ पुरूष भी हैं वे शायद टुरिस्ट हैं, या शायद किसी यात्रा पर जा रहें हो... वेटर प्लेट लगा चुका है, प्याज और नीम्बू भी एक प्लेट मे रख जाता है, मगर मैं उसे पूरा सलाद लगाने को कहता हूँ. तभी पुलिस की दो तीन जीपे आ कर रूकती हैं.. यार ! ये आखिर माजरा क्या है...? मगर कोई बात नहीं है . वो यहाँ खाना खाने आऐ हैं. फिर चले जाएंगे .माहौल समझने मे थोड़ा वक्त लगता है . मजे की बात हैं इस ढाबे का मालिक एक मुस्लिम या फिर बोरा है और यह वेज ढाबा है. मैं  आपको जानकारी दे दूँ, या शायद आप जानते भी हो, कुछ मुस्लिम भी शुद्ध शाकाहारी होते हैं. पुलिस ने अपना अपना स्थान यानी टेबले सम्हाल ली हैं. हमारा खाना भी लग चुका है. यह स्वादिष्ट हैं. ये मुसलमान खानसामे भी क्या गजब का खाना बनाते हैं, बस जान डाल देते हैं... 

वैसे सफर में खाने का भी एक नियम है, तो यदि आप कार चला रहे हो तो दोपहर में कम खाऐ ताकि नींद न आऐ… यार मैं घूमने निकला हूँ. सजा पाने नहीं तो मैं यह नियम नही मानता…...खाने के बारे मे कुछ बोलने का नई. 
 शाम हो चली है. भुज आने को हैं मै आपको बताऊ मैने पूरे सफर में पहले से कहीं भी कोई भी रूम बुक नहीं किया. जब मेरी योजना ही अनिश्चित है तो रूम बुक करवा कर मैं उस होटल मालिक के फोन पर फोन पर फोन का जवाब क्यों देता रहू ? वो मेरा बास नहीं हैं जो मुझे बार बार समय पर आने की तस्कीद करता रहें.... 

6.00PM भुज आ चुका हैं, मगर हमें और आगे नखरताना तक जाना है. आज और कल की रात वही रूकना है. चलिये हम गुजरात के इस भाग को दो भागों में बाँट देते है पहला मातानी मद, नारायण सरोवर, कोटेश्वर महादेव, लखपत एवं गुरूद्वारा और मांडवी, तो इस पहले भाग के लिये नखरताना में अपना पड़ाव डालते हैं. 
अहमदाबाद से मैने गणना की कि मुझे यहाँ पहुचने में रात के दस बज जाएंगे तो मैने नेट से होटेल गेलैक्सी मे एक कमरा बुक किया. यह होटल मुख्य मार्ग पर था. वैसे तो यह जगह इतनी छोटी है कि पूरा का पूरा कस्बा ही मुख्य मार्ग पर बसा है. तो होटेल गेलैक्सी वैसी बिल्कुल नहीं है जैसा की मैंने सोचा था. प्रवेश द्वार पर कोई न था. कुछ बच्चे खेल रहे थे, जो शायद मैनेजर के रहे होंगे. वो हमें देखते ही अंदर भाग गए. कुछ देर के इन्तजार पर छड़ी टेकता हुआ मैनेजर आया यह एक मल्टीपर्पज़ व्यक्तित्व था. उसने सभी काम सम्हाल रखे थे. वो बड़ी विनम्रता से बात कर रहा था.

“सर छोटी जगह है, स्टाफ के नाम पर सिर्फ मैं और मेरी बीबी ही है.” उसने अपनी व्यवस्था का विवरण दिया.. “खाने की व्यवस्था नहीं है, मगर पास में आपको अच्छा गुजराती खाना मिल जायेगा. चाय की एक दूकान नीचे हैं. पानी मैंने रख दिया हैं.. रूम की सफाई मेरी बीबी कर देगी..” 

उसने यह सब एक श्वास में कहा. शायद उसे डर था कहीं हम चले न जाएं मगर इस रात के इस वक्त मेरा कहीं जाने का विचार न था. कमरा अच्छा था. ए.सी. और टीवी काम कर रहे थे. हालाँकि ठंड इतनी थीं कि ए.सी. की आवश्यकता ही नहीं पड़ीं. तो यहाँ हम दो दिन रूकेंगे... 
 08.30 PM नखरतना…. सामान रख कर हम इस कस्बे में भोजन की खोज में निकल पड़ते हैं... अमूल की एक शाप खुली है. मै दूध का एक पैकेट यह सोच कर ले लेता हूँ कि किसी चाय कि दुकान पर इसे गर्म करवा लूँगा. मगर सभी दुकाने बंद हो चुकी हैं .एक बढिया गुजराती थाली पा कर मन तृप्त हो चला है. लौटते समय उस पैकेट की याद आती है… एक आइसक्रीम शाप अभी भी खुली है, यह कह कर कि सुबह हम पैकेट वापस ले लेंगे….वे उससे बात कर फ्रीजर में पैकेट रखवा देती हैं. क्या ऐसा हो सकता हैं ? जी हाँ ! बिल्कुल हो सकता हैं , ये पत्निया सब कुछ कर सकती है… .

 25.12.2018( 227km/2285km) 9.25 सुबह उस पैकेट की याद आती है अब यह किस्सा भी साथ साथ चल रहा हैं और रोचक हो चला हैं. आइसक्रीम शाप वाला बड़ा ऐम्ब्रेस्ड है, 
“…मैडम वह तो लड़के ने बेच दिया, मगर आप चिन्ता न करें मैं आपको दूसरा देता हूँ…”
 वो बार बार “सारी” कहते हुए दूसरा पैकेट दे देता हैं. 
हम जाने लगते हैं. 
“मैडम ठहरिये.. ये आपके पैसे, ” 
वह दो रूपए काउंटर पर रखते हुए कहता हैं…… 
मुझे उसकी ईमानदारी पर फख्र होता हैं…. 
चलिये यह किस्सा खत्म हुआ. बाद में इस किस्से को याद कर हम खूब हंसे…

होटल गैलेक्सी के नीचे चाय वाले ने दूध गर्म कर ग्लास को पूरा भर दिया है..  

10.25 AM माता नो मध याने आशापुरा  माता का  मन्दिर रास्ते में ही हैं. भीड़ हैं, मगर दर्शन हो जाते है.  मंदिर कच्छ जिले के  लखपत तालुका में एक गाँव है. गांव  एक छोटी सी स्ट्रीम के दोनों तट पर पहाड़ियों से घिरा हुआ है, और आशापुरा माता मंदिर के लिए समर्पित है , जडेजा के शासकों संरक्षक देवता भी माना जाता है.यह गाँव भुज से कच्छ जिले के मुख्यालय से लगभग 105  किलोमीटर दूर स्थित है.
गुजरात के दूसरे देवस्थानों की भाँति यहां भी भक्तो को रात में ठहरने की व्यवथा है, अब नारायण सरोवर लखपत  की ओर चलते हैं...श्रीमद भागवत पुराण में इन पंच सरोवरो का वर्णन हैं. भारत मे कुल चार पवित्र सरोवर हैं , जबकी पाँचवा सरोवर मानसरोवर हैं . जो चीन तिब्बत में है.

पुष्कर सरोवर, राजस्थान में, 
बिन्दू सरोवर, सिधपुर गुजरात में, 
नारायण सरोवर गुजरात में, 
पंम्पा सरोवर, कर्नाटक, तुगभद्रा नदी के पास… 

भगवान् श्री के मंदिर के समीप बने नारायण सरोवर में अभी भी पर्याप्त जल है, कौन इस सरोवर की हजारो हजार वर्षों से रक्षा करता आ रहा है...? श्रीमद्भागवत में वर्णन है कि पुत्र प्राप्ति के लिये दसपचेत्स् ने जल में खड़े होकर 10 हजार वर्ष तक रुद्र जाप किया.


1.00PM   कोटेश्वर महादेव .   
विशाल लहराते समुद्र से लगे मंदिर में बिराजे हैं "कोटेश्वर महादेव," अनंत के स्वामी हैं. सम्पूर्ण त्रिलोक उनका धाम है. हिमालय से महासागर तक आकाश से पाताल तक उनकी सत्ता है, जहाँ मर्जी हो वहॉं वास करते हैं. हुआ यह था कि रावण ने उन्हें अपनी तपस्या से प्रसन्न कर साथ चलने को राजी कर लिया तो भोले बस साथ चल पड़े. मगर जब इस स्थान से गुजरे तब शायद यह स्थान प्रभु को भा गया. अब उनका एक रूप सदा के लिए यही बस जाएगा . प्रभु यह भी जानते ही थे,  यही  रावण आगे चल कर सीता जी को हरने वाला है...बस प्रभु ने तय कर लिया रावण के साथ श्रीलंका गए तो असत्य के जीत होगी. प्रभु की इच्छा यही बिराजने की हुई, अपने भक्तो के साथ. सो रावण की मति इस तरह फेरी कि रावण ने शिवलिंग इस स्थान पर गिरा दिया या ब्राह्मणो द्वारा एक फसी हुई गाय को निकालने  का निवेदन मान कर शिवलिंग यही रख दिया...कौन जाने... मगर हज़ारो कि संख्या में शिव लिंग प्रगट हुए और रावण शिवलिंग ढूढ़ न सका अंततः एक शिवलिंग ले कर गंतव्य को रवाना हुआ... तबसे प्रभु यही बसे हैं.....असली शिवलिंग के आसपास मन्दिर बना दिया गया.

यह क्षेत्र पूर्ण सुन्दरता के साथ विकसित किया गया हैं और समुद्र किनारे का सुरम्य वातावरण कुछ इस तरह शान्त हैं कि यहाँ से जाने का मन नहीं करता...भारतीय नौसेना सेना के जवान स्पीड बोट मे सीमा की सतत रखवाली करते हुए देखे जा सकते है...हम सूदूर गूजरात में अपने घर से 2300 किलोमीटर दूर आ गऐ हैं. यहाँ से तो गुजरात की ही नहीं बल्कि देश की भी सीमा समाप्त हो जाती हैं और इसके पश्चात या तो समुद्र हैं या फिर पाकिस्तान की सीमा प्रारंभ होती है... 

आगे लखपत किले की दिवारो का रहस्य और किले के भीतर गुरूद्वारा कैसे बना यह जाने बिना यहाँ से वापस जाना न्यायोचित नहीं होगा ?
 3.00PM बस कुछ ही दूरी पर है लखपत और ये लीजिए आ गऐ. एक वृहत दरवाजे से इसके भीतर प्रविष्ट तो हो गऐ मगर भीतर कुछ नहीं बस एक खाली मैदान हैं. एक छोटा सा गुरूद्वारा है बस. तो यहीं है लखपत ? जब भीतर कुछ है ही नहीं तब इतनी बड़ी चहारदिवारी के निर्माण का औचित्य आखिर क्या है ? असल कहानी तो हमेशा की तरह गाईड के आने के पश्चात ही प्रारंभ होती हैं और सारे सवालों के जवाब धीरे धीरे मिलने प्रारंभ हो जाते हैं...
ये उस वक्त की बात है जब इस स्थान पर गुजरात का बंदरगाह हुआ करता था. जहाज अरब और दूसरे देशो से जिवनोपयोगी सामान ले कर यहाँ आया करते थे. तब यहाँ समुद्र भी हुआ करता था जो अब सूख चुका है. तो जहाज जो सामान लाया करते थे. उसे चोरो और डकैतो से सुरक्षित रखने के लिये यह चहारदिवारी बनाई गई. एक तरह से यह स्टाक यार्ड था. शाम के बाद दरवाजे बंद कर दिये जाते थे. सुरक्षा के लिये बन्दूको और तोपो का इस्तेमाल होता था...समुद्र सूखने और व्यापारिक केन्द्र के परिवर्तित हो जाने के कारण कांडला, भावनगर और हजीरा मे नए बन्दरगाह बनाऐ गए और मार्गो द्वारा सामान देश के अन्य भागों मे पहुचाया जाने लगा.. वर्तमान में मुख्य बंदरगाहों में मुंद्रा, पीपावाव, हजीरा, दाहेज, जामनगर, सिक्का बंदरगाह प्रमुख है .. 
गुरूद्वारे की कहानी यह हैं कि अरब देशो का भ्रमण करने हेतु गुरूनानक देव अपने जहाज का इंतजार करते हुए यहाँ कुछ देर के लिये रूके थे उनकी याद में गुरूद्वारा बना दिया गया. दरअसल इसी बहाने इस क्षेत्र की कुछ सुरक्षा हो जाती है वरना यह जगह सूदूर गुजरात में होने की वजह से कई असामाजिक तत्वों भूमाफिया का बसेरा बन सकती हैं. जब हम पहुचे तो सिखो एवं अन्य टूरिस्ट की भीड़ थीं... 

 5.00PM हम वापस नखरताना पहुँच चुके हैं. कल माडवी बीच और कुछ शापिंग.... 

26.12.2018 9.50 (126km/2411km)11.00AM मांडवी बीच सिर्फ और सिर्फ आखेट करने के लिये बना है. यहाँ हाई या लो टाईड की समस्या नहीं हैं और समुद्र की लहरे सारे दिन तट से टकराती रहती हैं..पैरा सोलिंग ,स्पीड जेट बोट और कई तरह के वाटर स्पोर्ट उपलब्ध है.
कहा जाता हैं, भारत में हर पाँच सौं किलोमीटर पर खान पान कपड़े भाषा और बोली बदल जाती है. यह बात यहाँ साफ़ नजर आती है कच्छ के वस्त्रों और अहमदाबाद या सूरत के वस्त्रो में विभिन्नता साफ दृष्टिगोचर होती है. मांडवी में गुजराती खास कर कच्छ क्षेत्रों की साड़ियाँ, चादर एवं पारंपरिक वस्त्रों की भरमार है. जिसमे रंगो की भरमार है. आप सिर्फ देखने का भी निश्चित कर निकले हो मगर कुछ ले कर न लौटे हो ऐसा हो ही नहीं सकता. और जैसा कि मैने पहले कहा था पत्नीजी ने कम सामान लाने की भरपाई यहाँ खरीददारी कर पूरी कर ली. खैर यह सामान अब सीधे गृहनगर तक जाना है, तो अब मेरी चिन्ता का विषय नहीं था... 

"विजय पेलेस" मैं नहीं देख पाया मगर यदि आप मांडवी तक गए हो तो इसे छोड़ कर आना भूल हो सकती हैं. हम दिल दे चुके सनम जैसी कई फिल्मों की शूटिंग के लिये यह बालीवुड का पसंदीदा स्थान रहा हैं. यहाँ भी गुगल ने बाजार की तंग गलियों में से मुझे निकाल कर मुख्य रास्ते तक पहुँचाया. 

जब आप ऐसे किसी लम्बे टूर की योजना बनाऐ तो हर चार या पाँच दिनो में एक पूरा दिन सिर्फ अपनी थकान मिटाने के लिये रखे इससे आपमें घूमने की ऊर्जा बनी रहेगी... विदेशी लम्बे समय के लिये भारत आते हैं और बड़े आराम से घूमते है. मेरी अब तक की इस यात्रा ने मुझे जो अनुभव दिये वो बेशक आगे काम आने वाले है... वैसे आप गुजरात का मैप देखे तो पाएँगे यह बहोत फैला हुआ नहीं है एक बार आप गुजरात पहुँच जाऐ फिर हर गंतव्य 150-200 कि.मी. के भीतर ही है, मतलब आपका समय घूमने मे ज्यादा और यात्रा मे कम खर्च होता है मगर आप जब सड़क मार्ग से जा रहें होते है, तब भी तो कई शहर गाँव एवं सभ्यताओ से वाकिफ होते रहते है, तो इस लिहाज से मेरी यात्रा किसी गंतव्य तक पहुँचने की न हो कर बल्कि मेरे लिये सम्पूर्ण गुजरात ही एक गंतव्य था और मैने इसी दृष्टि को आखिर तक कायम रखा... 

मांडवी मे भोजन के लिये “ओशो भोजनालय” सर्वश्रेष्ठ है. ये लोग भोजन परोसते नहीं बल्कि पूड़ी, चावल, भजिये या जलेबी का पूरा थाल ही आपके सामने रख देते हैं. बिल्कुल घर जैसे. जो चाहिए, जितना चाहिए ले लीजिये . इससे मन भर जाता है, एक तृप्ति का एहसास होता है. 

6.25PM अब अगला गंतव्य भुज है. होटल तुलसी रेसीडेंसी भुज चमक दमक से भरी  एक शानदार होटल हैं. सभी कर्मचारी  बाकायदा अपनी यूनिफार्म में हैं. और अपना काम मुस्तैदी से कर रहे हैं. हर आदेश का त्वरित पालन होता है. होटल के भीतर ही लगा हुआ रेस्टोरेंट भी  है....
"सर आपका नाश्ता सुबह आठ बजे तैयार हो जाएगा..." मैनेजर ने कहा.
 वो गुजराती अंग्रेजी हिंदी और मराठी भी फर्राटे से बोल रहा है...उसने कार से  सामान लाने एक आदमी भेज दिया है, नखरताना में जो आस टूट चुकी थी..... फिर एक नया विश्वास जाग उठता है... मगर मुझे फर्क नहीं पड़ता... यहाँ समय कीमती है .....समय पर जो मिल जाए बेहतर है...

यह होटल चहल पहल से भरी व्यवसायिक और पर्यटक दोनों के लिये उपयुक्त हैं. बाद में पता चला शहर मे इनकी तीन और होटले भी हैं , मगर उनके पास एक ही दिन के लिये कमरे खाली थे और मुझे दो दिन ठहरना था तो मेनेजर ने दूसरे दिन के लिए उनकी एक और होटल “होटल कच्छ रेसीडेन्सी” मे एक कमरा दे दिया... 

27.12.2018 08.45( 218km/2629km) 3.00PM धोरडो का ह्वाईट डेजर्ट कई  किलोमीटर तक फैला हुआ और जमे हुए शुद्ध नमक का सफेद रेगिस्तान है. यह प्रकृति द्वारा निर्मित वह स्थान है जहाँ कुछ देर के लिये लगता हैं हम किसी और ग्रह पर आ गए हैं. क्यों कि आँखो को हरी जमीन देखने की आदत है और यहाँ जमीन सफेद यानी सिर्फ सफेद है. धोरडो में नमक का यह सफेद रेगिस्तान बिल्कुल सपाट है, जो नमक के क्रस्ट का एक विशाल विस्तार है यह किलोमीटरो तक फैला है. आमतौर पर सूर्य और चंद्रमा के नीचे चमकने वाले सफेद कठोर नमक के क्रस्ट का निर्माण तब होता है जब पानी के वाष्पीकरण की दर वर्षा की दर से अधिक हो जाती है. इससे नमक जमीन पर एक मोटी लेयर के रूप में रह जाता है. गुजरात सरकार ने यहाँ एक टावर बनाया है जहाँ से आप प्रकृति के इस नायाब रचना से रूबरू हो सकते हैं .टॉवर को डिजाइन करते समय नमक के अणुओं की प्रेरणा ले कर के इसकी संरचना की गई है.
( चित्र देखे ) 

 "रण आफ कच्छ" देखने और इसे महसूस करने के लिये गुजरात टूरिज्म प्रति वर्ष शीतकाल में टेन्ट सिटी का अस्थाई निर्माण करता हैं... शाम हो चली थीं अब सूर्यास्त होने ही वाला था थोड़ी ही दूर पर काला डूगर (पहाड़) हैं एक अजनबी (ईश्वर का भेजा हुआ तीसरा आदमी ) से पूछता हूँ.. 
“सन सेट कहा ज्यादा अच्छा होता है ?”
 वह व्हाईट डेजर्ट का नाम लेता है. 
“ ठीक हैं हम काला डूगर देख कर आ जाएंगे..”
 “ आप शायद न आ पाऐ….. वह दूर है …”उस अजनबी ने कहा.. 
मैने अपनी कार काला डूगर के रास्ते पर रख दी है. यह रास्ता इतना सकरा है कि बस एक कार चल सकती है. बायी तरफ व्हाइट डेजर्ट हैं. उसके पास काली रेत है, फिर जो जमीन है वह घास फूँस वाली जमीन हैं. चारो तरफ जहाँ तक नजर जातीं है मीलो फैला मैदान हैं. वास्तव मे यह रास्ता लम्बा है. बीच बीच में कुछ गाड़ियाँ क्रास हो जाती है . 

काला डूगर की पहाड़ी की चढ़ाई शुरू होने वाली हैं. आगे एक चाय की दूकान हैं. मैं जरा देर को रूकता हूँ, चाय पीकर हम चल देते हैं .

काला डूगर में कारो की भरमार है . उपर दत्त मन्दिर हैं. हर रोज दोपहर को यहाँ गुढ़ और खीचड़ी का भोग लगता है. जिसे कुछ दूर बने एक चबूतरे पर रख दिया जाता है. कुछ देर में कुछ सियार आ जाते है और सारा प्रसाद चट कर जाते हैं. किवदंती है कि दत्त भगवान जब इस चबूतरे पर बैठे तो भूखे सियारों ने उन्हें घेर लिया तब दत्त भगवान छूरी से अपने हाथ और बाह का मांस काट काट कर उसे खिलाने लगें . बाद यहाँ एक मन्दिर बना दिया गया और तब से नित सियारो की भूख मिटाने को गुढ़ खीचड़ी का भोग लगाया जाता है. 

समुद्र के सूख जाने के पश्चात काली रेत छोड़ गया. यह रेत भी कई किलोमीटर तक फैली है..
इसे देखना भी अपने आप में एक अनुभव है .... सूर्यास्त का समय हो चला है. मैं यही कुछ वक्त रूकने का फैसला करता हूँ.  समय कम हैं . शायद व्हाइट डेज़र्ट न पहुंच सकूँ. सच ही तो कहा था उस अजनबी ने ....

 7.00PM भुज पहुँचते पहुँचते सात बज ही जाते है. भुज जैसा मैने सोचा था उससे कहीं बड़ा शहर हैं और व्यवस्थित रूप से बसाया गया है..

 28.12.2018 ( 389km/3018km) 09.00AM द्वारका की और….. भुज द्वारका मार्ग कुछ अच्छा नहीं है. समय और डीज़ल दोनों का अपव्यय है. जब गुजरात सरकार पर्यटन का विकास कर रहीं है तो कृष्ण नगरी तक पहुंचाने वाले मार्ग को दुरुस्त रखने की नितांत आवश्यकता है. 

 धीरूभाई अम्बानी का गाँव रास्ते पर नज़र आता  है.

 1.30PM दोपहर के देढ बजे एक ढाबा नज़र आता है. छह सात लोग और बैठे हैं कुछ परिवार भी है . काउंटर पर बैठा मेनेजर ( पाठक कृपया ध्यान दे यह मेनेजर हमारा चौथा और अंतिम आदमी है ) लड़को को टेबलो पर पानी और आर्डर सर्व करने को कह रहा है ..वह मेरे पास से गुजरा. 
मैने उससे कहा, "...तमारा ढाबा सारो छे.."

उसने कहा , "....मैं गुजराती नहीं बल्कि मुम्बई से हूँ.." 
और इसके पहले मैं कुछ कहूँ. उसने मुझे कुछ जानकारिया दी ... 

"पहले इस क्षेत्र में कुछ न्यूसेन्स था. खास कर रात के वक्त कुछ लूटपाट वैगरह. खैर दिन मे तो पुलिस की गाड़िया राउंड पर होती हैं सो दिन मे डर की कोई बात नहीं है..." 

इसके अलावा उसने इस जगह के बारे में कुछ और जानकारियाँ भी मुझे दी.. मैने  इस बारे में कुछ पूछा नहीं था ...
हम पिछले दस बारह दिनों से निर्भीक हो कर गुजरात में घूम रहें थे. ढाबे मेनेजर का लूटपाट के बारे में बात करना मुझे कुछ अजीब लगा...
 खैर हम लंच ले कर आगे बढ़े...आगे गूगल ने हाईवे छोड़ते हुए एक दूसरे रास्ते पर मोड़ दिया. ( नियम नंबर तीन का उल्लंघन )  मैं हाईवे छोड़ना नहीं चाहता था. परंतु गूगल ने मेरे दिमाग पर कब्जा कर लिया था. आखिर उसने अब तक कोई तीन हजार किलोमीटर रास्ते का दिशा निर्देश किया था, बिना कोई गलती किये, तो उस पर भरोसा करना लाजमी था. इस सकरे रास्ते पर कोई ट्राफिक नहीं था. हम चलते रहें. एक गाँव के थोड़ा पहले रास्ते को पत्थरों की एक लाईन लगा कर बंद कर रास्ते को गाँव की और मोड़ दिया गया था. 

मुझे उस ढाबे वाले मेनेजर की चेतावनी याद आई. मैने गाड़ी रोकी. यू टर्न लेते हुए पुनः उसी रास्ते पर चलने का फैसला लिया जिस रास्ते से आऐ थे. आगे रास्ते में अभी भी वह कार खड़ी थी. कपल अभी भी बहस कर रहा था.. थोड़ी ही देर में ही हम हाईवे पर पहुँचे चुके थे मैंने तय कर लिया, अब हम इसी हाईवे से द्वारका की ओर जायेंगे. कभी कभी रस्ते से समुद्र के भी दर्शन हो जाते थे.  

5.00PM द्वारका नगरी आ चुकी हैं. गोमती किनारे बसा यह मन्दिर वर्षों से आस्था और ऊर्जा का केन्द्र रहा हैं.
.  
28.12.2019 8PM रात आठ बजे भी मन्दिर प्रांगण में बहोत भीड़ थीं. श्रीकृष्ण जी को शाम को सजाया जाता है. यह सजावट फूलों की होती है. कृष्ण जी की आभा बस देखते ही बनती है. श्रद्धालु भाव विभोर हैं. प्रभु की एक झलक पाने को आतुर हैं, मैं देख रहा हूँ दर्शनार्थियों की भीड़ है,  एक झलक मिलते ही स्नेह आँखो से अश्रु बन कर बह निकलता है . मैं  अपने सभी चित परिचित और मित्रो  के लिए प्रभु से आशीर्वाद चाहता हूँ. आखिर उन्ही की वजह से तो मैं  हूँ.   गोमती नदी समुद्र से मिलती है. मन्दिर के पीछे समुद्र से चलने वाली हवा से ठंडक बढ़ने लगी थीं... मगर दर्शन अच्छे से हो चुके थे. मन प्रसन्नता से भर जाता है..

29.12.2018 5.30AM ( 73km/3091km) कल रात दर्शन के पश्चात भी मन नहीं भरा. एक बार फिर मन प्रभु को देखना चाहता है . 5.30 को उठ कर 6.30 की आरती में शामिल होते हैं. 
 11.00am भेंट द्वारका के लिये नावे चलती हैं. पक्षियों का जमघट लगा है.. अजीब अजीब आवाजे निकाल कर वे बोट के आसपास उड़ते रहते हैं. बाद मे समझ आया श्रद्धालू उन्हें खाने के लिये दाने दे रहे हैं
… 
 6.00PM द्वारका से लगा हुआ समुद्र, गोमती नदी उस समुद्र में मिलती हुई , और सूर्यास्त. यह सब मिल कर एक बखान न कर पाने वाला वातावरण निर्माण कर रहें थे . कुछ दी देर में सूर्य किरण से समुद्र का जल जगमगा उठा. सूर्यास्त हो चुका था. शाम को कुछ देर मंदिर में गुज़ार कर बाहर आ जाते हैं. पास ही लगे बाज़ार में भीड़ ज्यादा नहीं है. लोग चहलकदमी कर रहें हैं. लगता तो एक छोटा बाज़ार हैं, मगर दो घंटे घूमने के बाद भी ख़त्म नहीं होता बस एक भूल भुलैय्या की तरह है . दुकाने छोटी हैं, मगर करीने से सजी हैं. सकरी गलियां हैं. मैं कुछ दुकानों को याद रख लेता हूँ ताकि बाहर निकल सकूँ. दो घंटे तक घूमने के पश्चात भी वापस लौटने की इच्छा नहीं हो रही है . वास्तव में जो मज़ा यहाँ है, वो बड़े बड़े मॉल में कहाँ ? हर दुकानदार जैसे आपकी राह देख रहा हो, आपके स्वागत में उत्सुक. मॉल में लगता है जैसे सब कुछ बेजान हो .जीवन तो यहाँ महसूस होता हैं. बस समझ लीजिये बनावटी और ताजे फूलो जैसा अंतर हैं. एक कढ़ाव में दूध उबल रहा है, हम अंदर आ कर बैठ जाते हैं. कढ़ाव के पास एक आदमी बैठा है जो शायद मालिक है. दूध बनाने का उसका अपना तरीका है. कुल्हड़ भरने के पश्चात उसमे उसने मलाई और पिस्ते डाल दिए हैं और एक लड़का बड़े करीने से कुल्हड़ हमारे हाथो में थमा जाता है . बहोत दिनों तक मॉल में घूमने के बाद अब लगता है , मैं कोई वी.आई.पी. हूँ. जहा चैन के साथ कुछ देर बैठ सकता हूँ.. दो व्यक्ति हमारी सेवा में लगे हैं. यही भारतीय   परम्परा हैं. जहाँ दूकानदार के लिए ग्राहक भी अतिथि है. 

30.12.2018 (255km/3346km) 09.45 द्वारका से महात्मा गाँधी की जन्मस्थली पोरबंदर सिर्फ 100 किलोमीटर पर हैं . यह रास्ता समुद्र के किनारे किनारे चलता हैं, रास्ते भर मार्ग के दोनों ओर क्यारियों में समुद्र का पानी भर कर सूखने के लिए छोड़ दिया जाता हैं. बाद में रह गए नमक को एकत्र कर फैक्टरीज में परिशोधन कर लिया जाता हैं. यह कई किलोमीटर तक फैला हैं. सहारा रेगिस्तान में कभी सोना दे कर उसके वजन के बराबर नमक लिया जाता था. ऊपर वाले ने  कई जीवनोपयोगी वस्तुए पानी के मोल हमें बक्श दी है.

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 डायरी में सब सिलसिलेवार लिखा है..
  
11.00AM हरसिद्धी माता, 
 12.25PM पर मूल द्वारका, 
 1.30PM पोरबंदर  कीर्ति मन्दिर जो महात्मा गाँधी जी की जन्मस्थली है,

एवं,
 3.00PM से  4PM माधवपुर पोरबंदर बीच, 
5.45PM सोमनाथ पहुँचे , 

 शाम को सोमनाथ मंदिर के दर्शन किये, और आठ बजे का लाइट एंड साउंड शो देखा.

31.12.2018. 8.30AM....रूद्रभिषेक और गंगाजल अभिषेक….. 

बारह ज्योतिर्लिंग में प्रथम हैं सोमनाथ. अरब सागर के किनारे विराजे हैं अनंत सत्ता के स्वामी शिव. जिनके चरणो को सागर की लहरे नित पखारती हैं. इस मन्दिर का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है. दक्ष ने अपनी 27 कन्याओ का विवाह चन्द्रदेव के साथ सम्पन्न किया, मगर चन्द्र उनमें से एक रोहिणी को अधिक चाहते थे. अन्य रानियो ने जब इसकी शिकायत अपने पिता से की तो दक्ष ने चन्द्रदेव को शाप देते हुए कहा कि उनका तेज नित घटता जाऐगा. इस शाप से मुक्ति पाने हेतु चंद्रदेव ने पूर्ण स्वर्ण से शिव मन्दिर का निर्माण कर तपस्या की. इससे उन्हें शाप से मुक्ति मिल गई. इसके कई वर्षों पश्चात रावण ने चाँदी और बाद मे श्रीकृष्ण ने लकड़ी से इसका पुनःनिर्माण किया. राजा भीमदेव ने पत्थरो से इसका निर्माण किया देश के आजाद होने के पश्चात वल्लभ भाई पटेल खंडहर हो चुके इस मन्दिर को उसका भव्य स्वरूप लौटाने में सफल रहें… मोहम्मद गजनी ने 1000 -1027AD तक भारत को सत्रह बार लूटा. इसकी सबसे बड़ी लूट 1027AD में सोमनाथ पर थीं जहाँ से उसने हजारो हिन्दू सैनिकों एवं प्रार्थना करते हुए आम लोगों को मौत के घाट उतार कर मन्दिर से स्वर्ण, हीरे जवाहरात और खजाना लूट लिया. अलग थलग फैले हिन्दू राजा इतने बेबस थे कि बस अश्रूपूर्ण आँखो से गजनी ने इस कृत्य को देखते रहें. 
इसे अब तक 17 बार नष्ट किया गया. इस तरह अखंड भारत की इस धरोहर को दुश्मनो ने एक नहीं कई बार धराशायी किया. मगर वे इस मन्दिर की दीवारों छतो को ही ध्वस्त कर पाऐ, इस बात से सर्वथा अंजान कि सिर्फ और सिर्फ शरीर नाशवान हैं आत्मा तो सदा के लिये अक्षुण हैं. वे इस मन्दिर की आत्मा को छू भी न पाएँ और हर बार यह मन्दिर अपने और भी भव्य स्वरूप को प्राप्त करते हुए निखरता गया... 
 यह शिवभक्तों की श्रद्धा ही है कि शिव उसी भव्यता के साथ पुनर्स्थापित होकर  इस बात को सिद्ध करते है कि वे जय पराजय से परे है. वर्तमान में शिवलिंग वाला प्रकोष्ट  और कुछ स्तंभ स्वर्ण की चादरों से मढ़ दिये गए है. धीरे धीरे मन्दिर का सम्पूर्ण आंतरिक भाग स्वर्णमय करने की योजना है. मंदिर प्रांगण में रोज रात पैतालिस मिनट के दो लाइट एंड साउंड शो चलते हैं. जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बडा ही सुंदर सजीव चित्रण किया जाता है. 

( मैं आपको यहाँ एक बात अवश्य बताना चाहूँगा. सोमनाथ मंदिर जैसी व्यवस्था मैंने पूरे भारत में कुछ ही स्थानों पर महसूस किया. प्रायः यह होता है की आस्था से जुड़े बड़े बड़े मंदिरो में व्यवस्था का अभाव होता है.  दर्शनार्थियों  का सामना पहले व्यवस्था से ही होता हैं. अब सोमनाथ में क्या व्यवस्था है ? यह आप स्वयं जा कर देखे तो महसूस  कर पाएंगे ... .)  

31.12.2018 ( 85km/3431km)10.35am पर सोमनाथ से निकलते हुए 12.30 पर दीव पहुँचे. होटल शिवम में रूकते हैं…..ज्यादा समय न गँवाते हुए नायडा केव्ज देखने निकलते है .. 

ये क्या हैं ? इन काली बदसूरत चट्टानों पर यह रंग किसने भर दिये हैं ? बैंगनी, आसमानी, आरेंज रंगों के ये पट्टे किस चित्रकार की कल्पना है ? यकीनन यह प्रकृति का काम नहीं हो सकता. प्रकृति का नहीं तो ये चित्रकारी फिर किसकी है ? यह भी तो हो सकता हैं किसी मार्डन आर्ट्स कालेज के स्टूडेन्ट्स ने अपनी सीखी हुई कला के कुछ नमूने यहाँ बिखेर दिये हो और उन लड़कियों की नाजुक उँगलियाँ ने उनकी कल्पनाओ से अधिक तेजी से काम करते हुए इस कार्य को अंजाम दे दिया हो.. बहोत देर जब यह गुत्थी नहीं सुलझी तो मैने नेट के कुछ दरवाजे खटखटाऐ शायद किसी दरवाजे के पीछे इसका राज छुपा हो...

आखिरकार एक जगह इसका जवाब मिल ही गया. पुर्तगीज ने किले के निर्माण के लिए पत्थरों की खोज करते वक्त इन गुफाओं की खोज की बाद में सेना के रहने के लिये भी ये गुफाए आश्रयदाता बनीं...ये सब प्रकृतिक हैं इनकी सरंचनाए भी और इनके रंग भी....सब कुछ फोटोग्राफी के लिये सर्वथा उपयुक्त भी है.... 

शहरी भीड़ से दूर दीव शांत जगह हैं. समुद्र ने जो इसे विशालता बक्शी हैं तो शायद और किसी चीज की इसे दरकार नहीं. अपने आप में परिपूर्ण और मस्त, उतना ही खुबसूरत जितना कि अमूमन सभी समुद्र किनारे के स्थान होते हैं. दीव से विदा लेते लेते यह आपका दिल जीत ही लेता हैं.

 01.01.2019 ( 210km/3641km) 8.30am दीव से घोघा..

 2.00pm. घोघा. प्रधानमंत्री जी ने कुछ ही महिने पहले घोघा से दाहेज के लिये सात मंजिला रो रो फेरी सेवा प्रारंभ की हैं आप इस क्रूज़ में अपने वाहन के साथ प्रविष्ट हो कर दाहेज जा सकते हैं. मुझे अब सूरत जाना है. सड़क मार्ग से यह दूरी 431 कि.मी. रो रो फेरी से यह घट कर मात्र 31 कि.मी. की रह जाती है. फेरी से यह सफर दो घंटे ( दो घंटे टर्मिनल पर कुल चार घंटे ) मे पूर्ण होता हैं....

फेरी के लोअर डेक में 60 ट्रक, 5 से 6 बस, 40 कारे, 40 मोटरसाइकल की जगह है और अपर डेक में दो ए. सी. कक्ष बिजनेस तथा एक्सीक्यूटिव है. कुल क्षमता   500 यात्रियों की है. कार के लिये ₹1000 और बिजनेस क्लास 350 /- एवं  तथा एक्सीक्यूटिव क्लास 500 /- देने होते है. किसी मल्टीप्लैक्स के स्नैक्स लाउंज की तरह  चाय काफी पेस्ट्रीज इत्यादि उपलब्ध हैं. अपने आप में समय की बचत के साथ यह रोमांचक भी है ...

08.30PM  एक रात भरूच में एवं एक रात पुनः शेगाव में रूकते हुए 03 .01 .2019 को रात आठ बजे जबलपुर पहुंचते है ... 

और अंत में….. 
नव विवाहित कपल को  बेशक पहाड़ एकांत और खुशनुमा माहौल प्रदान करते है मगर अरब सागर की लहरे तो बस मांडवी के तट से खेलना चाहती है. महादेव तो कोटेशवर में समाधि लगाए विराजमान है , और बर्फ सा सफ़ेद रेगिस्तान सिर्फ धोरडो में ही पसरा है. और यह सब देखने के लिए तो आपको गुजरात ही आना  होगा. तो अपने व्यस्त समय से कुछ समय निकालिये जनाब और 
कुछ दिन तो गुजारिये गुजरात में...  

तो यह यात्रा यहाँ समाप्त नहीं होती हैं,  बस अभी एक सफर पूरा हुआ हैं. सफर की थकान उतरते ही फिर किसी नए सफर पर चल देंगे...एक बिल्कुल नए नज़रिये के साथ. चीज़ो को समझने..

अपना बैकपैक तैयार रखे... 
खुश रहिये और पढ़ते  रहिये...

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You have a right to perform your prescribed duty, but you are not entitled to the fruits of action. Never consider yourself to be the cause of the results of your activities, and never be attached to not doing your duty. - Bhagavad Gita, Chapter II, Verse 47


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