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शनिवार, 20 जुलाई 2019

छह माह महू में

छह माह महू में…..

M.H.O.W. महू नाम का भी एक रोचक अर्थ है इसका मतलब है “मिलेट्री हेडक़्वाटर ऑफ़ वॉर” 

अक्तूबर 2000 की एक सुबह...
"जी मेरा मकान महू रेलवे स्टेशन से लगी हुई कालोनी में हैं. उसे मैंने किराए से नेवी के एक रिटायर्ड आफीसर को दिया हैं. उससे लगे हुए दो कमरे है मेरे पास वो आपको मिल जायेंगे. आपको सर रहना ही कितने दिन हैं ? छह महिने की तो बात हैं. जब तक आपका काम चल रहा हैं तब तक रहियेगा. जब काम खत्म हो जाऐ खाली कर दीजियेगा…” 

मकान मालिक ने हँसते हुए कुछ इस तरह कहा जैसे कोई बड़ा रहस्य सुलझा लिया हो. यह मकान महू से तीन चार किलोमीटर की दूरी पर था. हिरण्याखेड़ी स्टेशन से लगा हुआ…. बिल्कुल शान्त जगह... अगले छह माह तक मेरा आवास यही होगा .

मैं महू में किसी काम के सिलसिले में आया हूँ. ईश्वर के सभी कार्य किसी न किसी प्रयोजन के बिना कोई आकार नहीं लेते...तो महू में मेरा होना भी किसी प्रयोजन का एक भाग रहा होगा. तो मैं कुछ अच्छे की खोज में था. कुछ ऐसी बाते, कुछ अनुभव जो मेरे साथ जिंदगी भर रह सके और आज देखिये मैं  वही आपके साथ साझा कर रहा हूँ.  प्रत्येक सफलता और असफलता में भी भले ही कोई  प्रयोजन होता हो. मैने इसकी चिन्ता कभी नहीं की. ये तो  बस दो पहलू है....सिर्फ  कर्म और इसकी निरंतरता की चिंता के सिवा और किसी चीज़ की इच्छा तो स्वयं कृष्ण भी करने को नहीं कहते.... 

महू छावनी 1818 में सर जॉन मैल्कम द्वारा मंदसौर की संधि के कारण स्थापित किया गया था, अंग्रेजी और होल्करों के बीच इंदौर पर शासन किया था. सर जॉन मैल्कम की सेनाओं ने 1818 में महिदपुर की लड़ाई में होलकरों को हराया था. इस लड़ाई के बाद होलकर साम्राज्य की राजधानी महेश्वर शहर से इंदौर में स्थानांतरित हो गई थी. स्थानीय किंवदंती के अनुसार विंस्टन चर्चिल ने महू में कुछ महीने भी बिताए थे, जब वह भारत में अपनी रेजिमेंट के साथ एक सबाल्टर्न सेवा कर रहे थे. यह अंग्रेजो द्वारा बसाया शहर हैं. इसका एक भाग जिसे सेना ने अपने नियंत्रण मे रखा हैं. बिलकुल शिमला या चैल की तरह हैं. महू का यह भाग सेना को समर्पित हैं, सेना के लिये हैं...सेना ने इस भाग को और शहरो की तरह बनने न दिया और वहीं संस्कृति बरकरार रखी है जो इसे एक अलग पहचान देती हैं... 

 जब आप महू में होते हैं जनाब तब आपको खबर भी नहीं होती कि, आप इंदौर जैसे बड़े शहर के बिल्कुल, जी हाँ बिल्कुल करीब हैं. इन्दौर अपने आसपास के छोटे शहरों की भीड़ भाड़ की सारी जिम्मेदारी एक बड़े भाई की तरह अपने ऊपर ले लेता हैं. बखूबी निबाह भी लेता है. अपनी इसी दरियादिली की वजह से यह एक शोरगुल और व्यस्त चौराहे और भीड़ से भरे शहर में तब्दील होता जा रहा हैं, और सही मायने में यही उसका त्याग भी हैं. इन्दौर की बात यदि मैं करू तो मैं सन् छिहत्तर के उस वक्त को याद करना चाहूँगा जब तांगे चला करते थे और सड़के रोज धुला करती थीं. उस वक्त सड़क पार करने के लिये चौकस नहीं रहना पड़ता था. लोग रास्ते पर साथ चला करते थे. आगे जाने के लिए सामने वाले को हटाने की जरूरत  नहीं थीं , तो लोग जी लेते थे जीना जानते थे  और जी भर कर बातें कर लिया करते थे.  किसी को कही पहुँचने की जल्दी न थीं. यह स्वरूप आगे अस्सी तक कायम भी रहा. यह शहर था ही इतना खूबसूरत कि बाहर से आकर लोग यहाँ बसने लगे. इससे हुआ यह कि इससे प्यार करने वाले खालिस इन्दौरियो का न हो कर यह एक मिश्र रहवासियों का होता गया. वैसे इंदौरवासियों ने गर्व करने की एक वजह खुद तलाश की हैं और वो हैं स्वच्छता. और यह सिद्ध कर दिखाया हैं की अगर  "हम चाहे तो" बहोत कुछ कर सकते हैं. यहाँ बस एक ही शब्द परेशानी का सबब बन जाता हैं और वह शब्द हैं , ...."चाहे तो..." मगर सच में इस बार सफाई पसंद इन्दौर वासियों ने "चाह " लिया है और कर के दिखा ही दिया है . 

अस्सी के पहले का वक्त इसके बेहतरीन समय के रूप मे गिना जाना चाहिए….इसके पश्चात परिवर्तन बहोत तेजी से हुआ. वर्तमान में रहने वाला युवा वर्ग इंदौर के पुराने चेहरे से वाकिफ नहीं है. वे सब नए माहौल में ढल चुके है.  यहाँ तक कि इंदौर में रह रहे मेरे पाठक जब इसे पढ़ रहे होंगे तब भी उन्हें महू की धड़कने महसूस नहीं हो रही होगी…. साहब इंदौर की वह शख्सियत हैं, वो शोर गुल हैं कि वहाँ महू जैसे छोटे शहर की धड़कने सुनाई ही कहा देती हैं ? मगर महू तो आपको सूकून के साथ सोचने की सहूलियत देता हैं. आपको रास्ते से अभी भी  कोई नहीं हटाता. कहीं पहुचने की किसी को घाई नहीं है...क्यों कि हर आदमी जी रहा हैं…..चैन से रहने की इच्छा के साथ. चलिये इन बातों से आगे चल कर देखते है महू में क्या हो रहा हैं  ? इसकी धड़कने सुनने की ज़रा कोशिश करते है 

 उस वक्त मोबाइल न था. मेरे पास महू की एक भी फोटो नहीं हैं मगर आज भी सारी तस्वीरें जेहन में ताजा हैं. छोटी से छोटी हर चीज भी . ताकि आपको यकीन हो जाऐ यह सब मैं मन गढंत नही लिख रहा हूँ. वो यादाश्त है न साहब, ईश्वर ने इन्सान को जो बक्शी हैं, तो आज बीस साल बाद भी वो हर चीज हर बात एक फिल्म की तरह मेरे सामने हैं. महू दरअसल सेना के स्थापत्य के लिये ही जाना जाता हैं. केन्ट क्षेत्र में शहर की चिल्ल पौ से दूर एक अनुशासन साफ नजर आता हैं कई वर्षों से यह ऐसा ही हैं.. 

सुबह के 9 बजे है. मुझे ब्रेड चाहिए. मैं जानता हूँ, रेलवे फाटक के पास की बेकरी खुली होगी. मुझे वहाँ ब्रेड मिल जाएगी. वैसे सारे शहर में बेकरी की भरमार हैं. यह जगह जगह हैं. रेल्वे फाटक से लगी हुई बेकरी खुल चुकी हैं . मुझे ब्रेड के साथ ताजे पेटिस और क्रीम रोल भी मिल जाते हैं. इस फाटक पर ट्रेनों का ज्यादा आवागमन नहीं हैं. आप इस फाटक से भीतर प्रवेश करते हैं शहर की तलाश में मगर शहर कही नज़र नहीं आता क्यों कि शहर इन्दौर में हैं. यहाँ शहर नाम की कोई चीज नहीं हैं... 
बहोत कम लोग जानते है कि सेना के कठोर अनुशासन से फौलाद बन चुके सेना के अफसरों के भीतर एक बेहद नरम हृदय भी है जो कला का दीवाना हैं. बस अफसरों के कला के प्रति इसी दीवानगी ने महू के कलाकारों, चित्रकारों की जिंदगी में रंग भर दिए है. यही रंग चित्रकारों ने अपनी पेंटिंग में भी भरे है. उनकी ज़िन्दगी इन्ही अफसरों से आबाद है. मुख्य मार्ग पर दोनों तरफ बहोत से चित्रकार हाथों मे ब्रश लिये अलग अलग आकार वाले कैनवास पर तैल चित्र के रूप में अपनी कल्पनाओ को आकार देने मे मशरूफ हैं. ज्यादातर पेन्टिग में जंगल बगीचे याने प्रकृति को कैद किया गया हैं. कुछ में महिलाएं और बच्चे भी हैं और कुछ पेन्टिग जानवरों की भी हैं. जानवरों में चित्रकारों की पहली पसंद शेर और दूसरी घोड़े हैं. वे कहते है सिर्फ इन दो जानवरों में वो बात हैं जिन्हें दिखाने के लिये वे ब्रश उठाते हैं. ये चित्र इतने जीवन्त हैं कि लगता हैं बस अभी बोल पड़ेंगे. इन नायाब कलाकृति के ज्यादातर खरीदार सेना के अफसर हैं. उन्ही की वजह से ये चित्रकार वजूद में हैं.


इसी मार्ग पर आगे एक चाय की दुकान हैं. खास बात यह हैं कि यहाँ गर्म गर्म चाय के साथ मक्खन लगी हुई ब्रेड बन मिल जाती हैं जो और कही नहीं मिलती.  इलायची वाली चाय का स्वाद अभी भी मेरी जुबान पर हैं. और आगे चले तो तिराहे के थोड़ा पहले एक स्टोर हैं, यह देसी कम विदेशी ज्यादा नजर आता हैं. विदेशी चालेट्स बेरीज, ड्राई फ्रूट जैसी  चीजे मिल जाती हैं. भँवरीलाल मिठाईवाला ने अपनी पहचान दूर दूर तक बनाई हैं… यह मार्ग एक खुले मैदान से जा मिलता है जहा विभिन्न खेलो से सम्बंधित गतिविधियां आयोजित होती रहती है. पास में एक सिनेमा हाल और कुछ रेस्टोरेंट है. महू के सभी मार्ग इस जगह पर मिलते है. शाम को यह क्षेत्र लोगों की चहलकदमी से भरा होता हैं... यहाँ  बेहतरीन टेलर  हैं जिन्हे शानदार सूट सिलने मे महारथ हासिल हैं.

सफेद टी शर्ट और सफेद हाफपेन्ट में सेना के आफीसर घूमते हुए नजर आते हैं, तो देख कर गर्व होता हैं.  केन्ट एरिया मे सेना के अफसरो के बंगले बने हैं. जिनके बाहर सशस्त्र गार्ड का पहरा हैं .यह क्षेत्र भी करीने से सजाया गया हैं मार्गो के आसपास बगीचो का निर्माण और उनकी देखभाल के लिये माली तैनात हैं...


डाक्टर बी. आर. अम्बेडकर जी के सम्मान में एक वृहत  सामाजिक विज्ञान विश्व विद्यालय का निर्माण किया गया और भारत सरकार ने 2016 मे इसे यह दर्जा  दिया. यह विश्वविद्यालय देश मे पहला हैं जहाँ सामाजिक विज्ञान की शिक्षा दी जाती हैं... 

हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, महू के निकट जनपावकुट्टी को विष्णु के अवतार परशुराम का जन्मस्थान कहा जाता है. 

भारतीय रेल ने महू से कालाकुंड पातालपानी तक एक हेरिटेज ट्रेन चलाई हैं आप इसका लुत्फ भी उठा सकते हैं.

महू और उसके आसपास के पर्यटन स्थलों में बहोत सी जगहे शामिल हैं. जो पसंद हो घूम आइये .... 
भीम जन्मभूमि, 
 पातालपानी झरना 
मेहंदी कुंड वाटर फॉल 
चोरल बांध 
नखरी बांध 
बेरछा बांध 
तिन्छा वाटर फॉल 
जनपव पहाड़ी 
मंदिरजाम द्वार 
बामनिया कुंड वाटर फॉल 
मानपुर में सीता माता वाटर फॉल 
काला कुंड 
चोरल नदी 
राजा राजेंद्र सिंह सोलंकी का राज महल 
वांचू प्वाइंट 
जनपव पहाड़ी 

तो अब जब भी अगली बार आप महू जाए तब महू को एक बार इस नज़रिये से भी देखियेगा. इस बार इतना ही.... अगली बार मिलते हैं फिर कोई नया नजरिया कोई नया विचार ले कर...

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खुश रहिये........... और पढ़ते रहिये........ 

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